भण्‍डाफोड़ू के पुराने लेख...4

आप मुहम्मद  क्या कहेंगे ?

लोग मुहम्मद के बारे में कुछ भी कहते हों ,लेकिन एक बात निर्विवाद है कि मुहम्मद जैसा व्यक्ति दुनिया में कोई नहीं हुआ .उसने लोगों कि अज्ञानता ,अंधविश्वास का पूरा पूरा फायदा उठाया था .और लोगों को मुसलमान बनाने के लिए हरेक हथकंडे अपनाये थे .इसमे डराना ,लालच देना सब शामिल हैं .इस्लाम से पाहिले अरब में यहूदियों और ईसाईयों ने अनेकों काल्पनिक बातें फैला रखी थीं ,जैसे शैतान ,फ़रिश्ते ,जन्नत ,दोजख आदि.इन्हींके आधार पर वह धर्म चल रहे थे .मुहम्मद ने इनमे जिन्न ,हूरें ,गिलमा और जोड़ दिए ,जिस से लोगों को ललचाया जाये .इसके आलावा मुहम्मद ने जन्नत और जहन्नम के बीच में एक और स्थान की कल्पना कर डाली .मरने के बाद आत्मा कब्र के अन्दर इसी जगह में तब तक रहेगी जब तक उसका मुर्दा शरीर फिर से जिन्दा नहीं किया जायेगा .फिर अंतिम फैसला हो जाने पर जीव नर्क या स्वर्ग में जायेगा .इस जगह को मुहम्मद ने "बरज़खبرزخ "का नाम दिया . कुरान में लिखा है -
1 -बरज़ख क्या है ?
"मरने के बाद एक जगह बरज़ख है ,जीवित करके उठाने के दिन तक "सूरा -अल मोमिनीन 23 :100
"स्वर्ग और नर्क के बीच बरज़ख है ,लोग जिसे पार नहीं कर सकते " सूरा -रहमान 55 :20
मुहम्मद पाखंडी तो था ही ,वह कई दावे भी करता था ,जैसे चाँद के तुकडे करना आदि .इसी तरह मुहम्मद ने दावा किया कि वह अपने लोगों को बरज़ख की तकलीफों से बचा सकता है .
मुहमद का बाप अब्दुल्ला बचपन में मर गया था .और बाद में माँ अमीना भी मर गयी .मुहम्मद को उसके चाचा अबूतालिब ने पाला था .जब वह मर गया तो तो मुहम्मद को उसकी चाची "फातिमा बिन्त असदفاطمه بنت اسد "ने अपने पास रख लिया .मुहमद के चारे भाई का नाम अलीعلي था .
सन 626 को मुहम्मद की चाची फातिमा की अचानक मौत हो गयी .जब लोग उसकी लाश को दफना चुके तो मुहम्मद ने अपनी जवान चाची को बरज़ख के बोझ से बचने के लिए जो महान कार्य किया था वह कोई सोच भी नहीं सकता .
इसे हिंदी में "शव सम्भोग 'अंगरेजी में "Necrophilia " और अरबी में "वती उल मौती وطيءالموتي"कहा जाता है .मुहमद ने अपनी चाची की लाश के साथ सम्भोग किया था ,ताकि वह जन्नत में जाये .इसके सबूत में हिंदी ,अंगरेजी और अरबी प्रमाण दिए जा रहे हैं -
2 -शव सम्भोग (Necrophilia )क्या है ?
शव सम्भोग या Necrophilia एक प्रकार की मानसिक विकृति है ,इसे आम तौर से Sex with dead body भी कहा जाता है. इसका किसी नस्ल और संस्कृति से कोई सम्बन्ध नहीं हैं .ऐसे विकृत लोग सब जगह हो सकते हैं.लेकिन मुझे विश्वास है की मुसलमान कुछ अलग प्रकार के विकृत मानसिकता के रोगी है.धन्य है ऐसे इस्लाम को ,जिसने इस विकृति को पागलपन की सीमा से भी पर कर दिया है .क्या कोई यह दावा कर सकता है की मुस्लिम देशों में ऐसा नहीं होता है .
इसी विषय पर शोध करने पर एक रोचक हदीस मिली है ,जिसे सबको बताया जा रहा है यह हदीस "कन्जुल उम्माल "नामकी किताब से ली गयी है जिसका अर्थ श्रमिकों का खजाना है .इसके एक अध्याय "The issue of womenقضية امراة "में अली इब्न हुस्साम अल दीन ,जिसे लोग अल मुत्तकी अल हिंदी भी कहते है ,अपने हदीसों के संकलन "अल जामी अल सगीरالجامع الصغير "में जिसे जलालुद्दीन शुयूती ने जमा किया यह हदीस दर्ज की है -
Necrophilia: This is a mental disease and it has nothing to do with race or culture. There are sick people everywhere and I am sure Muslims who are sick in many other ways thanks to their sick religion are no better when it comes to this insanity. Do you have any proof that necrophilia does not happen in Islamic countries?
Talking about Necrophilia there is a curious hadith that I would like to share.
This is from a book called "Kanz Al Umal" (The Treasure of the Workers), in the chapter of "The issues of women", authored by Ali Ibn Husam Aldin, commonly known as Al-Mutaki Al-Hindi. He based his book on the hadiths and sayings listed in "Al-Jami Al-Saghir," written by Jalal ul-Din Al-Suyuti.
3 -शव सम्भोग का हदीस से प्रमाण
इब्ने अब्बास ने कहा कि रसूल ने कहा "मैंने (यानी रसूल ने ) उसके (फातिमा बिन्त असद )के सारे कपडे उतार दिए ताकि वह जन्नत के कपडे पहिन सके .और फिर मैं उसके कफ़न (कब्र )में उसके साथ लेट गया ,जिस से उसे कब्र के संताप का बोझ हल्का हो सके .मेरी नजर में वह अबूतालिब के बाद अल्लाह कि सर्वोत्तम स्रष्टि थी ".यह बात रसूल अली कि माँ फातिमा को इंगित करके कह रहे थे .
-जामीअल सगीर -वाक्य संख्या -3442
Narrated by Ibn Abbas:
‘I (Muhammad) put on her my shirt that she may wear the clothes of heaven, and I SLEPT with her in her coffin (grave) that I may lessen the pressure of the grave. She was the best of Allah’s creatures to me after Abu Talib’… The prophet was referring to Fatima , the mother of Ali. (Sentence number 34424
( नोट -अरबी में मूल हदीस को देखने के लिए नीचे दी गयी लिंक देखिये )
http://www.al-eman.com/Islamlib/viewchp.asp?BID=137&CID=426#s2
4 -मुहम्मद ने लाश के साथ सम्भोग किया !
अरबी में नीचे दी गयी हदीस में सोने (Slept )शब्द के लिए अरबी में (Idtajat इदतजात )शब्द का प्रयोग किया गया है.दिमित्रिअस ने इसे स्पष्ट करके बताया कि अरबी में यह शब्द औरत के साथ लेटना ,और सम्भोग के लिए लेटने के लिए प्रयुक्त होता है .जिस समय मुहमद ने यह हदीस कही थी ,वह जानता था कि फातिमा से साथ सोने से फातिमा को उसकी पत्नी ,यानि मुसलमानों कि माँ का दर्जा मिल जाएगा .और मुहम्मद फातिमाको कब्र के दुखों को हल्का करना चाहता था.मुसलमानों कि मान्यता है कि .क़यामत के दिन तक उनको कब्र में कष्ट उठाने होंगे .इसीलिए मुहम्मद ने फातिमा की लाश से सम्भोग किया क्योंकि मुसलमानों की माँ को कब्र में कष्ट नहीं हो सकता .
Demetrius Explains : "The Arabic word used here for slept is "Id'tajat," and literally means "lay down" with her. It is often used to mean, "Lay down to have sex." Muhammad is understood as saying that because he slept with her she has become like a wife to him so she will be considered like a "mother of the believers." This will supposedly prevent her from being tormented in the grave, since Muslims believe that as people wait for the Judgment Day they will be tormented in the grave. "Reduce the pressure" here means that the torment won't be as much because she is now a "mother of the believers" after Muhammad slept with her and "consummated" the union. "
(नोट-अरबी में पूरी हदीस देखिये )
بسم الله الرحمن الرحيم
الحمد لله الكبير المتعال والصلاة والسلام على سيدنا محمد المتبع في الأقوال والأفعال والأحوال وعلى سائر الأنبياء وآله وصحبه التابعين له في كل حال‏.‏
‏(‏أما بعد‏)‏ فيقول أحقر عباد الله علي بن حسام الدين الشهير عند الناس بالمتقي‏:‏ لما رأيت كتابي الجامع الصغير وزوائده تأليفي شيخ الإسلام جلال الدين السيوطي عامله الله بلطفه ملخصا من قسم الأقوال من جامعه الكبير وهو مرتب على الحروف جمعت بينهما مبوبا ذلك على الأبواب الفقهية مسميا الجمع المذكور ‏(‏منهج العمال في سنن الأقوال‏)‏ ثم عن لي أن أبوب مابقي من قسم الأقوال فنجز بحمد الله وسميته ‏(‏الإكمال لمنهج العمال‏)‏‏.‏ ثم مزجت بين هذين التأليفين كتابا بعد كتاب وبابا بعد باب وفصلا بعد فصل مميزا أحاديث الإكمال من منهج العمال‏.‏ ومقصودي من هذا التمييز أن المؤلف رحمه الله ذكر أن الأحاديث التي في الجامع الصغير وزوائده أصح وأخصر وأبعد من التكرار كما يعلم من ديباجة الجامع الصغير‏.‏ فصارا كتابا سميته ‏(‏غاية العمال‏)‏ في سنن الأقوال‏.‏ ثم عن لي أن أبوب قسم الأفعال أيضا فبوبته على المنهاج المذكور وجمعت بين أحاديث الأقوال والأفعال‏.‏ وأذكر أولا أحاديث منهج العمال ثم أذكر أحاديث الإكمال ثم أحاديث قسم الأفعال كتابا بعد كتاب فصار ذلك كتابا واحدا مميزا فيه ماسبق بحيث أن من أراد تحصيل قسم الأقوال أو الأفعال منفردا أو تحصيلهما مجتمعين أمكنه ذلك وسميته ‏(‏كنز العمال في سنن الأقوال والأفعال‏)‏‏.‏ فمن ظفر بهذا التأليف فقد ظفر بجمع الجوامع مبوبا مع أحاديث كثيرة ليست في جمع الجوامع لأن المؤلف رحمه الله زاد في الجامع الصغير وذيله أحاديث لم تكن في جمع الجوامع‏.‏
وها أنا أذكر ديباجة المؤلف رحمه الله من الجامع الصغير وذيله ‏(‏ن - زوائده‏)‏ ومن الجامع الكبير حتى لا أكون تاركا ولا مغيرا ألفاظه إن شاء الله تعالى‏.‏ ‏(‏ن - الا بعض رموز وألفاظ يسيرة تركها الشيخ رحمه الله تعالى فيهما اقتصارا فتركت ذلك للضرورة فليعلم‏.‏‏)‏
خطبة الجامع الصغير
5 -मुहम्मद के कुकर्मों के और सबूत
यह बात तो सिद्ध हो गयी ,कि मुहम्मद ने अपनी चाची फातिमा बिन्त असद की लाश के साथ सम्भोग किया था .लेकिन मुहम्मद जानवरों के साथ भी कुकर्म करता था .इसके सबूत में यू ट्यूब से दो विडियो क्लिप दिए जा रहे हैं .देखिये-
http://www.youtube.com/watch?v=dRQ7jJRr01U
Muhammad had sex with animals and even with his aunt - Islam exposed - Demonic Religion
video
http://www.youtube.com/watch?v=XbM0whdZCmE
जो लोग मुस्लिम ब्लोगरों ,मुल्लाओं की मक्कारी भरी बातों में आकर मुहम्मद को आदर्श व्यक्ति ,समझाने की भूल कर रहे हैं ,उन्हें सचेत हो जाना चाहिए .इसी( महान?) व्यक्ति के कारण सारी दुनिया त्रस्त है .जो व्यक्ति अपनी वासना की पूर्ति के लिए बच्चियों ,दासियों ,कैद की गयी औरतों के साथ सम्भोग (बलात्कार )करता हो वह अल्लाह की और मुसलमानों की नजर में भले कुछ भी हो ,लेकिन जो व्यक्ति अपनी चाची की लाश के साथ ही सम्भोग करता हो ,उसके लिए दुनियां किसी भी शब्दकोश में कोई शब्द नहीं मिल सकेगा .
यदि हमारे पाठक मुसलमानों ले लिए इस उतम व्यक्ति "मुहम्मद "के लिए कोई उपयुक्त शब्द बताएँगे ,तो मुहम्मद के लिए वही शब्द इस्तेमाल करूंगा .
मुझे पूरा विश्वास है कि आपको मुहम्मद के बारे में सही जानकारी मिल गयी है ,और आपका भ्रम दूर हो गया होगा अभी मुहम्मद के सारे परिवार ,और उसके साथियों (सहाबा) का नंबर है .जावेद जितना मुझे उलझाने की चेष्टा करेगा खुद उलझता जायेगा .
शठे शाठ्यम समाचरेत



मुहम्मद के आदर्श दुर्गुण !

कुरान में मुहम्मद के द्वारा किये गए हरेक काम को मुसलमानों के लिए आदर्श उदाहरण (Good Example )बताया गया है .और इसी को सुन्नत कहा गया है .इसका अर्थ है कि मुसलमानों को वही काम करना चाहिए ,जो मुहम्मद करता था ,या जो भी काम उसने किये थे उसका अनुकरण करना जरूरी है .कुरआन में यही लिखा है -
"निश्चय ही तुम्हारे लिए रसूल का उत्तम आदर्श मौजूद है .जो भी अंतिम दिन आशा रखता है ,रसूल का अनुसरण करे .सूरा -मुम्तहिना 60 :6
"निश्चय ही तुम्हारे लिए अल्लाह के रसूल का आदर्श पर्याप्त है ".सूरा -अहजाब 33 :21
मुसलमान मुहम्मद को एक पूर्ण मानव या "कामिल इन्सान "बताते हैं और उसके हरेक काम को सद्गुण कहते हैं .
मुसलमान मुहम्मद के चरित्र को "उस्व ए हसना " या اسوهِ حسنه उतम चरित्र कहते हैं .
अब आपको मुहम्मद के कुछ उत्तम चरित्र या सद्गुणों के बारे में प्रमाणिक हदीसों और इस्लाम की तवारीख से हवाले दिए जा रहे हैं .कुछ हदीसे लम्बी होने के कारण उसका सारांश ही लिया जा रहा है .पूरी हदीस साथ में दी गयी साईट में देख सकते हैं .यद् रखिये कि मुहम्मद का एक एक कार्य सुन्नत बन जाता था .और कानून का दर्जा प्राप्त कर लेता था .इसी को शरीयत भी कहा जाता है .और जो इसका इंकार करता है ,वह काफ़िर घोषित कर दिया जाता है .
अब संक्षिप्त में मुहम्मद के आदर्श कार्यों या सद्गुणों (दुर्गुणों )के नमूने देखिये -
1 -यहूदी द्वेषी )Antismetic )
"अबू हुरेरा ने कहा कि रसूल ने कहा कि जब तक हम ईसाइयों और यहूदियों का जमीन से सफाया नहीं करेंगे ,फैसले का अंतिम दिन नहीं आयेगा .इस लिए यहूदियों और ईसाइयों को क़त्ल करो .अगर वह किसी पत्थर या पेड़ के अन्दर भी छुप जायेंगे तो पेड़ बोल लार उनका पता दे देगा .लेकिन "गरकाद"का पेड़ चुप रहेगा .क्योंकि वह खुद यहूदी है .मुस्लिम-किताब 41 हदीस 6985 ,बुखारी -जिल्द 4 किताब 56 हदीस 791
2 -जादू ग्रस्त (Bewictched )
"आयशा ने कहा कि ,बनू जुरैक के कबीले के एक यहूदी लाबिद बिन अल असाम ने रसूल रसूल पर जादू कर दिया था .जिस से वह दीवाने हो गए थे .उनके मुंह से गलत आयते निकलती थीं .ऎसी हालत कई महीनों तक रही .जब हमने टोटका किया तो वे ठीक हुए .".
मुस्लिम -किताब 26 हदीस 5428
3 -रिश्वतबाज (Briber )
"कुरेश के लोगों ने रसूल से शिकायत की ,कि आप लूट के मॉल से "नज्द "के सरदार को रिश्वत देते है ,लेकिन हमें कुछ नहीं देते .रसूल ने कहा कि मैं ऐसा इस लिए करता हूँ ,ताकि वह लोगों को इस्लाम के प्रति आकर्षित करे.बुखारी -जिल्द 4 किताब 55 हदीस 558
4 -बाल उत्पीड़क (Child Abuser )
"अस सुब्र ने कहा कि ,रसूल ने कहा कि ,जैसे ही तुम्हारे बच्चे 6 साल के हो जाएँ ,तो उनसे नमाज पढाओ ,और रसूल पर दरूद पढ़ने को कहो.अगर वह ऐसा न करें तो उनकी बेंतों से धुनाई करो .अबू दाऊद-किताब 2 हदीस 294 और 295
5 -बाल हत्यारा (Child Killer )
"अल अतिया अल कारजी ने कहा कि ,जब रसूल ने बनू कुरेजा के कबीले पर हमला किया था ,तो हरेक बच्चे के कपडे उतार कर जाँच की ,जिन बच्चों के नीचे के बाल (Pubic hair ) निकल रहे थे ,उन सब बच्चों को क़त्ल करा दिया गया .उस वक्त मेरे बाल नहीं उगे थे ,इसलए मैं बच गया था .मुस्लिम -किताब 38 हदीस 4390
"अस सबा बिन जसमा ने कहा कि ,रसूल ने "अल अबबा"की जगह पर काफिरों के साथ उनके बच्चों को भी क़त्ल कर दिया था .और औरतों को कैद करके लोगों में बाँट दिया था .बुखारी -जिल्द 4 किताब 52 हदीस 256
6 -स्त्री वेशधारी (Cross Dresser )
"अब्दुला बिन अब्दुल वहाब ने कहा कि ,एक बार मैं रसूल के घर गया ,मैं उनको तोहफा देने गया था .रसूल ने उमे सलमा सेकहा कि ,मुझे परेशां नहीं करो इस वक्त मैं आयशा के कपडे पहिने हुए हूँ ,जैसा हमेशा करता हूँ .मुस्लिम -किताब 2 हदीस 3941
7 -तिरस्कृत (Dispraised )
"अबू हुरैरा ने कहा कि ,कुरैश के लोग मुहम्मद को रसूल नहीं बल्कि पाखंडी मानते थे .और उसे धिक्कारते थे .वे मुहम्मद को "मुहम्मम "कह कर मजाक उड़ाते थे .बुखारी -जिल्द 4 किताब 56 हदीस 733
8 -अहंकारी (Egoist )
"अबू सईद बिन मुल्ला नेकहा कि ,एक बार मैं नमाज पढ़ रहा था .तभी रसूल ने मुझे पुकारा .मैनेनाहीं सुना ,जब रसूल ने चार पांच बार पुकारा तो मैं उनके पास गया .रसूल ने कहा कि नमाज से जादा रसूल की बात सुनना जरूरी है ,उसी समय रसूल ने यह आयत बना दी थी .जिसमे कहा गया है "अपने रसूल की बात पाहिले सुनो .कुरआन -सूरा अल अन आम 8 :24 "बुखारी -जिल्द 6 किताब 60 हदीस 226
बुखारी -जिल्द 6 किताब 60 हदीस 1 .और बुखारी -जिल्द 6 किताब 60 हदीस 170
9 -द्वेष प्रचारक (Hate Preacher )
"अबू जर ने कहा कि रसूल ने कहा कि ,अल्लाह ने मुझे दुनिया में नफ़रत फैलाने का काम सौंपा कर लिए भेजा है.और अल्लाह के नाम पर लोगों के बीच नफ़रत फैलाना उत्तम काम है.इसा से ईमान पुख्ता होता है .नफ़रत ईमान का हिस्सा है.अबू दाऊद-किताब 40 हदीस 4582 -4583 .
10 - खुशामद पसंद(Magalomaniac )
"अबू हुरैरा ने कहा कि ,रसूल ने कहा कि,जब तक तुम अपने बाप और बच्चों से अधिक मुझे अपना अजीज नहीं मानते ,मुसलमान नहीं बन सकते.तुम सारी दुनिया और अपने बाप और बच्चों से मुझे अपना हितैषी मानो.बुखारी -जिल्द 1 किताब 2 हदीस 12 और 13
11 -मोटा और स्थूल (ओबेसे )
"अबू बाजरा ने कहा कि एक बार रसूल को मोटापे के कारण एक पड़ी पर चढ़ने में तकलीफ हो रही थी ,ताल्हा बिन अबू उबैदुल्ला ने मुस्लिम नामके एक आदमी से कुछ लोगों बुलवाया ,और कहा देखो यह रसूल तुम्हारा बोझा हैं ,जो काफी भारी है .इसे ध्यान से ऊपर उठाना .फिर उन लोगों ने रसूल को ऊपर चढ़ाया.अबू दाऊद-कताब 40 हदीस 4731
12 -लुटेरा (Plundarer )
"जबीर बिन अब्दुल्ला ने कहा कि रसूल ने कहा कि ,अल्लाह ने मेरे लिए लूट का माल हलाल कर दिया है.बुखारी -जिल्द 4 किताब 53 हदीस 351
(नोट -इसके बारे में पूरा विवरण "लुटेरा रसूल "शीर्षक से अलग से दिया जाएगा )
13 -चरित्रहीन(Characterless )
"आयशा ने कहा कि रसूल के कई औरतों से गलत सम्बन्ध थे.फिर भी वह दूसरी औरतों को बुला लेते थे.और अपनी औरतों के लिए समय और दिन तय कर देते थे.पूछने पर कहते थे ,तुम चिंता नहीं करो ,तुम्हारी बारी तुम्हीं को मिलेगी .अगर मैं अल्लाह इच्छा पूरी करता हूँ ,तो तुम्हें जलन नहीं होना चाहिए .बुखारी -जिल्द 6 किताब 60 हदीस 311
(नोट -इसी बात पर कुरान की सुरा -अहजाब 33 :51 naajil
14 -नस्लवादी (Racist )
"अनस बिन मालिक ने कहा कि रसूल ने कहा कि ,हारेग गुलाम को अपने मालिक के हरेक आदेश पा पालन करना चाहिए .और हरेक काले लोग (Negro )हबशी दास होने के योग्य हैं.क्योंकि उनका रंग काले सूखे अंगूर की तरह (Raisin )की तरह है .बुखारी - जिल्द 9 किताब 89 हदीस 256 .और बुखारी -जिल्द 1 किताब 11 हदीस 662 और 664
15 -कामरोगी(Sex Addict )
"अनस बिन मालिक ने कहा कि ,रसूल बारी बारी से लगातार अपनी पत्नियों और दसियों से सम्भोग करते थे ,फिर भी उनकी वासना बनी रहती थी .बुखारी -जिल्द 7 किताब 62 हदीस 142 .
"अनस बिन मालिक ने कहा कि ,रसूल बारी बारी से हरेक औरत के साथ सम्भोग कर्राते थे .लेकिन उनकी वासना शांत नहीं होती थी .और जब भी युद्ध में औरतें पकड़ी जाती थीं ,रसूल उनके साथ सम्भोग जरुर करते थे.बुखारी -जिल्द 1 किताब 5 हद्दीस 268
16 -गुलामों का शौकीन (Slaver (
मुहम्मद को गुलाम रखने का शौक था .वह गुलाम बनाता भी था और उनका व्यापार भी करता था .मुहमद के पास मर्द और औरत गुलाम थे .कूछ के नाम इस प्रकार हैं -
मर्द गुलाम -साकन,अबू सरह ,अफ़लाह,उबैद ,जकवान ,तहमान,मिरवान,हुनैन ,सनद ,फदला,यामनीन,अन्जशा अल हादी ,मिदआम ,करकरा ,अबू रफी ,सौवान,अब कवशा,सलीह ,रवाह ,यारा ,नुवैन ,फजीला ,वकीद ,माबुर,अबू बकीद,कासम ,जैदइब्ने हरीस ,और महरान .
स्त्री गुलाम -सलमा उम्मे रफी ,मैमूना बिन्त असीब ,मैमूना बिन्त साद ,खदरा ,रिजवा ,रजीना,उम्मे दबीरा ,रेहाना ,और अन्य जो भेंट में मिली थीं
17 -हताश (Hopeless )
"अबू हुरैरा ने कहा कि ,जब मुहम्मद के उस्ताद "वर्का बिन नौफिल "मर गए तो ,कुरआन की आयतें आना बंधो गयीं थीं .और रसूल इतने हताश हो गए कि ,वे आत्महत्या के लिए एक पहाड़ी पर चढ़ गए थे.क्योंकि कई महीनों से कोई नई आयत नहीं बनी थी .बाद में रसूल ने अपना इरादा बदल लिया था .और कोई दूसरा उपाय खोज लिया था ..बुखारी -जिल्द 9 किताब 87 हदीस 111
18 -आतंकवादी (Terrorist )
"अबू हुरैरा ने कहा कि ,रसूल ने कहा कि ,मुझे अल्लाह ने आदेश दिया है कि मैं लोगों के दिलों में दहशत पैदा कर दूँ ,ताकि लोग भयभीत होकर अपने खजाने और सत्ता मेरे हाथों में सौंप दें .बुखारी -जिल्द 4 किताब 52 हदीस 220
19 -अत्याचारी (Torturer )
"अबू हुरैरा ने कहा कि,एक ग्रामीण ने रसूल को "अबे मुहम्मद "कहकर पुकारा ,रसूल ने उसकी जीभ काटने का हुक्म देदिया था .और लोगों ने उसे पकड़ कर उसकी जीभ काट दी
.इब्ने इशाक -हदीस 595
"अबू हुरैरा ने कहा कि ,एक मुआज्जिन ने ईशा कि नमाज में अजान देने में देर कर दी ,रसूल ने उसको उसके घर सहित जिन्दा जलवा दिया .और वह माफ़ी मांगता रहा .
बुखारी -जिल्द 1 किताब 11 हदीस 626
20 -गन्दा (Unclean )
"अनस बिन मालिक ने कहा कि ,रसूल के सिर में जुएँ (Lice )भरी रहती थी ,वे नहीनों नही नहाते थे .और "उम्मे हरम "रसूल के सिर से जुएँ निकालती थी .उम्मे हरम "उदबा बिन अस साबित "की पत्नी थी .उसका काम रसूल के जुएँ निकालना था .बुखारी -जिल्द 4 किताब 52 हदीस 47
21 -अशिष्ट (Mannerless )
"आयशा ने कहा कि ,एक बार "अल अवाली "गाँव केलोग रसूल का दर्शन करने के लिए आये .वे काफी दूर से पैदल आये थे ,और थके हुए थे .और आराम करना चाहते थे .रसूल ने उनको गाली देकर भगा दिया .बुखारी -जिल्द 2 किताब 13 हदीस 25
22 -पत्नी पीडक (Wife Beater )
"मुहम्मद बिन किस ने कहा कि ,आयशा ने बताया कि एक बार रसूल रत को चुपचाप "अल बाक़ी "के कब्रिस्तान में चले गए.मैंने उनका पीछा किया .रसूल अजीब सी हरकतें कर रहे थे ,और हाथ हिला कर किसी से बातें कर रहे थे ,मैं चुपचाप जल्दी से घर आ गयी ,जब मैंने रसूल से इसके बारे में पूछा तो ,वह नाराज हो गए ,और मुझे नीचे पटक कर गिरा दिया .फिर मेरे दानों स्तनों पर घूंसे मारने लगे .जिस से मुझे कई दिनों तक दर्द होता रहा .सही मुस्लिम -किताब 4 हदीस 2127
23 -धनलोभी(Greedy )
"अल मसूद अल अंसार ने कहा कि ,हम रसूल के आदेश से बाजारों में जाते थे ,और जकात के बहाने दुकान में जोभी होताथा उठा लेते थे .यदि धन नहीं मिलाता तो अनाज या कपडे उठा लेते थे .रसूल कहते थे एक ऐसा समय था ,जब मैं गरीब था .लेकिन आज मेरे पास हजारों दीनार हैं .तो कल मेरे पास सौ हजार दीनारें होंगीं .बुखारी -जिल्द 2 किताब 24 हदीस 497
हम चाहते है

मेरा उन सभी लोगों से अनुरोध है जो,मुस्लिम ब्लोगरो के दुष्प्रचार ,झूठ से प्रभावित होकर मुहम्मद को एक आदर्श व्यक्ति मानने की भूल कर रहे हैं .यह तो थोड़े से उदाहरण हैं .मुहम्मद के आदर्श दुर्गुणों के बारे में जितना लिखा जाये उतना ही कम पडेगा .हरेक मुसलमान में मुहम्मद के यही आदर्श दुर्गुण अवश्य मौजूद होते हैं .यही मुसलमानों की पहिचान है .यही मुसलमान अपने बच्चों को सिखाते हैं और इन्ही गुणों को अपना कर जिहादी तैयार होते हैं .
मेरा अपने मित्रों से निवेदन है की ,मेरे सभी लेखों को धारावाहिक की तरह से नियमित रूप से पढ़ें और दूसरों को पढ़ायें .ताकि इस्लाम .कुरान ,और मुहम्मद संबंधी उनके भ्रमों का निर्मूलन हो जाये .और वे किसी जिहादी ब्लोगर के जाल में फंस कर अपनी संस्कृति और धर्म को न भूल जाएँ .वर्ना भारत से हमारा अस्तित्व मिट जाएगा .
http://wikiislam.net/wiki/Qur'an,_Hadith_and_Scholars:Muhammad



मुहम्मद की याददाश्त कमजोर थी !

अगर आप कभी किसी मदरसे के पास से गुजरे होंगे ,तो जरुर देखा होगा कि मौलवी हाथों में सोटी लेकर छोटे छोटे बच्चों मार मार कर को कुरान पढ़ा रहा है .और बच्चों को ऐसी भाषा में कुरान रटा रहा है ,जिस भाषा का बच्चे एक शब्द भी नहीं समझते है .लेकिन बच्चे मौलवी की छड़ी के डर अपने दिमाग में कुरान की आयतें ही हिल हिल कर इस तरह से ठूंसने की कोशिश करते हैं ,जैसे चोर चोरी का माल जल्दी जल्दी से गठरी में भरते है .कभी अपने सोचा है कि मुसलमान समझाने की जगह तोते की तरह रटने पर क्यों जोर देते है .दुनिया में किसी देश में ,किसी भी विषय को पढ़िए ,हर जगह विषय को समझने पर जोर दिया जाता है .समझने से बुद्धि का विकास होता है .यह सत्य है .लेकिन मुसलमान उल्टा काम इसलिए करते हैं ,कि यह मुहमद की सुन्नत है .
मुहमद अनपढ़ तो था ही .साथ में मंद बुद्धि भी था .उसकी याददाश्त इतनी कमजोर थी कि रोजमर्रा की छोटी छोटी बातें भी भूल जाता था .यहांतक अपनी बनायीं कुरान की आयातें भी भूल जाता था .और कभी उसके साथी और कभी उसकी पत्नी उसे याद दिलाती रहती थी कौन सी आयात किस सूरा में किस जगह होना चाहिए .इसी लिए लोग मुहम्मद को एक ही बात रटाते रहते थे .फिर भी जब मुहम्मद भूल जाता था तो बड़ी बेशर्मी से कह देता था कि मुझे अल्लाह ने ही यह बात ,या आयात भुला दी है .
मुहमद पाने बचाव में यह भी कह देता था कि मैं सर्व ज्ञानी नहीं एक आम इन्सान हूँ .अपनी इन भूलों के लिए मुहम्मद अल्लाह से माफ़ी भी मांगता रहता था .
यह सारा निष्कर्ष कुरान और हदीसों को पढ़ने पर प्राप्त होता है .देखिये कैसे -
1 -मुहमद सर्वज्ञानी नहीं था
"मैं गैब (छुपी हुई )बातों को नहीं जनता हूँ "सूरा -अनआम 6 :50
"जो परोक्ष कि बातें ,तुम लोग मुझसे पूछते हो ,मुझे उसका ज्ञान नहीं है .वह तो सिर्फ अल्लाह ही जानताहै "सूरा -अल आराफ 7 :188
2 -मुहमद आम आदमी था
"मैं तो केवल तुम्हारी ही तरह एक आम इन्सान हूँ "सूरा -अल कहफ़ 18 :110
"हे रसूल तुम अपने गुनाहों के लिए अल्लाह से दुआ करो ,और धीरज रखो "सूरा-अल मोमिनीन 40 :55
"अल्लाह तुम्हे सुधर कर सीधे रस्ते पर लाये ,और तुम्हारे गुनाहों को माफ़ करे "सूरा -अल फतह 48 :2
"हे नबी हम तुम्हें सिखायेंगे ,ताकि तुम आगे से बार बार नहीं भूलोगे "सूरा -अल आला 87 :6 -7
3 -मुहम्मद कुरान भूल जाता था
"आयशा ने बताया कि जब रसूल कुरआन की कोई आयत भूल जाते थे ,तो मैं उनको बताती थी कि कौन सी आयत किस आयत के आगे या पीछे है ,और किस जगह होना चाहिए थी "बुखारी -जिल्द 6 किताब 61 हदीस 556
"आयशा ने कहा कि जब रात को रसूल मुझे कुरान की आयतें सुनते थे ,तो मैं उनकी गलतियाँ सुधार देती थी ,और बताती थी कि फलानी आयत फलानी आयत के साथ है .और इन आयतों तरतीब (क्रम )क्या है "सहीह मुस्लिम -किताब 4 हदीस 1721
"इब्ने हिश्शाम ने कहा कि जब भी रसूल कुरान की किसी आयत को गलत तरीके से पढ़ते थे ,या कोई आयात भूल जाते थे ,तो मैं उनको टोक देता था .और उनकी गलती सुधार देता था "बुखारी -जिल्द 6 किताब 61 हदीस 657
4 -मुहम्मद नमाज भूल जाता था
"मुआविया बिन खुदरी ने कहा कि,रसूल जब नमाज पढ़ते थे ,तो नमाज में रुकू और सजदा तक भूल जाते थे इसलिए रसूल ने एक आदमी को रखा हुआ था ,जो उनको बताता था कि वह कौन सी रकात में भूल कर रहे हैं "अबू दाऊद-किताब 3 हदीस 1018
5 -मुहम्मद को याद दिलाया जाता था
"अब्दुल्लाह इब्न मसूद कहा कि रसूल अक्सर कहते रहते थे कि ,मैं तो एक साधारण सा मनुष्य हूँ .और उसी तरह भूल जाता हूँ जैसे दुसरे आम आदमी भूल जाते हैं "अबू दाऊद -किताब 3 हदीस 1015
"अब्दुल्लाह ने कहा कि ,रसूल ने कहा कि ,मेरी याददाश्त कमजोर है ,और मैं भी तुम्हारी तरह एक साधारण इन्सान हूँ और अक्सर कई बातें भूल जाता हूँ ,यदि मैं कोई बात या किसी आयत को भूल जाया करूँ तो मुझे याद करा देना "बुखारी -जिल्द 1 किताब 8 हदीस 394
6 -मुहम्मद का अल्लाह पर आरोप
"अबू हर्ब बिन अबू अल अस्वद ने कहा कि मेरे पिता अबू मूसा अल अशरी ने बताया कि एक बार बसरा से तीन सौ लोग रसूल से मिलने आये .उनमे कुछ लोग कुरान के हाफिज भी थे .और जब उन में से कुरान की सूरा (बनी इस्राएल 17 :13 ) और सूरा (अस सफ्फ 61 :2 ) रसूल के सामने सुनाई तो,रसूल ने उन लोगोंसे कहा कि मैं तो इन आयतों को भूल चूका था .तुमने मुझे फिर से याद दिला दिया .मैं तुम से वादा करता हूँ कि ,क़यामत के दिन तुमसे तुम्हारे किसी भी गुनाह के बारे में कोई सवाल नहीं किया जायेगा .और मैं यह भी वादा करता हूँ कि तुम्हें सबसे पहिले प्रवेश दिया जायेगा "सही मुस्लिम -किताब 5 हदीस 2286
7 -भूल जाने पर नयी आयतें बना देना
मुहम्मद के समय कुरान लिखित रूप में मौजूद नहीं थी ,इसलिए जब भी मुहम्मद कोई आयत या सूरा भूल जाता था ,तो दूसरी आयतें बना देता था .और किसी को पता नहीं चलता था मुहम्मद ने इस से पहिले कौनसी आयत कही थी -इसके यह प्रमाण हैं -
"जब हम कोई आयत भुलवा देते हैं ,तो उस आयत के स्थान पर वैसी ही आयत बना देते हैं ,या नयी आयत बना देते हैं .और तुम्हें इसका पता भी नहीं लगता है "सूरा -बकरा 2 :106
"हम एक आयत कि जगह दूसरी आयत बदल देते हैं ,और हे नबी तुम तो बस नयी नयी आयतें गढ़ने वाले हो "सूरा -अन नहल 16 :101
"सहल बिन साद ने कहा कि ,रसूल यह बात भी भूल जाते थे कि ,आज उनका रोजा है .खुजैमा ने कहा कि ,रसूल कि याददाश्त इतनी कमजोर थी कि,हम उनकी बातों को प्रमाण नहीं मानते थे .वह लोगों के नाम और घटनाएँ और यहांतक कि खुद कुरान की आयतें भी भूल जाते थे ."
बुखारी -जिल्द 3 किताब 31 हदीस 178 .और बुखारी जिल्द 3 किताब 31 हदीस 143
अब आप स्वयं निर्णय कर सकते हैं कि ,जो मुहमद इतना भुलक्कड़ था ,की कुरान की आयतें भी भूल जाता था .और चालाकी से नयी आयतें बना देता था .तो मुहमद की कुरान पर कैसे विश्वास किया जा सकता है .बड़े आश्चर्य की बात है कि अल्लाह को पूरी दुनिया में मुहमद के आलावा कोई और नहीं मिला था .ऐसे भुलक्कड़ की कुरान को ईश्वरीय किताब मानने वाले खुद भूल रहे हैं कि मुहमद एक साधारण आदमी था .
यही कारण है कि ,मुसलमान बच्चों को कुरान रटाते है और समझाने कि जगह याद करवाते है .जिसका परिणाम यह है कि ,मुसलमानों में कोई बड़ा विज्ञानी ,या अन्वेषक नहीं हुआ जो विश्व स्तर का वैज्ञानिक हो .सब मुहमद कि तरह जाहिल और जिहादी हैं .
http://answering-islam.org/Green/forgot.htm



इस्लाम और भारतीय आत्मविज्ञान

भारत के मनीषियों ने हजारों साल पहिले यह सिद्ध कर दिया था कि मनुष्य की म्रत्यु के बाद उसका शरीर तो अवश्य नष्ट हो जाता है .लेकिन मौत के बाद उसका अस्तित्व पूरी तरह समाप्त नहीं होता है . मृत्यु के बाद भी प्राणी का सूक्ष्म शरीर बना रहता है .जिसे आत्मा या Soul भी कहा जाता है .इस्लाम में इसे "रूहروح "और "नफ्सنفس "भी कहा गया है .और दौनों का अर्थ आत्मा ही है .
भारतीय ऋषियों ने यह भी प्रमाणित किया कि,हरेक व्यक्ति को उसके जीवन भर में किये गए प्रत्येक शुभ अशुभ कर्मों का फल अवश्य ही भोगना पड़ता है .चाहे वह यही जीवन हो ,और चाहे मृत्यु के बाद का जीवन हो .यह एक अटल नियम है .इसे भारत में "कर्मसिद्धांत Law of Karma "कहा जाता है .सूफी इसे "उसूल अल अमल اصول العمل"कहते हैं .कालांतर में यह ज्ञान भारत से निकल कर के ईरान से होकर अरब तक पहुँच गया .और इस्लाम में इस विज्ञानं को "रूहानियतروحانيت "और यूरोप में इसे Spritualism कहा जाता है .जब यह विज्ञानं अरब में गया तो उसका असर इस्लाम पर भी पड़ा .और कुरान में भी इसकी झलक मिलती है .और कुछ बातें ऐसी हैं जो ,भारतीय दर्शन और सिद्धांतों से पूरी तरह मेल खाती हैं .और कुछ मुसलमानों के दिमाग की उपज हैं .जिनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है ,और केवल मान्यताएं हैं .
इस लेख में केवल उन्हीं बातों पर चर्चा की जा रही है जो ,इस्लाम ने भारत से लेकर अपनायी हैं .जैसे -
1 -आत्मा परिपूर्ण और शुद्ध होती है
"हमने आत्मा को परिपूर्ण बनाया है "सूरा -अश शम्श 91 :7
"तुम सबको एकही आत्मा से पैदा किया है "सूरा अन निसा 4 :1
"रूह अल्लाह के हुक्म से है ,और तुम्हें इसका केवल थोडा सा ही ज्ञान दिया गया है "सूरा बनी इस्राएल 17 :85
2 -सबकी आत्मा एक जैसी है
"चाहे धरती पर चलने वाला कोई जीव हो ,चाहे दो पंखों से उड़ने वाला पक्षी हो ,सबतुम्हारे जैसे ही हैं ,और सब एक ही गिरोह से हैं ,हने किताब में इनके बारे में कोई बात नहीं छोड़ी है .यह सब अपने रब की तरफ जमा किये जायेंगे और अपना हिसाब देंगे ."सूरा अनआम 6 :38
3 -सबको मरना है
"तुम्हें मरना है ,और इन लोगों को भी मरना है "सूरा - अज जुमुर 39 :30
"हरेक जीव को मौत का स्वाद चखना है ,और हमारी तरफ वापस लौट कर आना है "सूरा -अल अम्बिया 21 :35
4 -जीवन मृत्यु का चक्र अनवरत है
"अल्लाह सजीव से निर्जीव ,और निर्जीव से सजीव पैदा करता रहता है .और मृत्यु के बाद भी जीवन प्रदान करता है "सूरा -अर रूम 30 :19
"जातस्य ध्रुवो मृत्यु ध्रुवो जन्म मृतस्य च "गीता -2 :27
"तुम अल्लाह के साथ कुफ्र की नीतियाँ क्यों अपनाते हो ,जबकि उसने जब तुम निर्जीव थे फिर से जीवित किया था .और वही तुम्हें फिर फिर से मारता है ,और फिर फिर से जिन्दा करता है .और तुम मर कर फिर उसी के पास लौटाए जाओगे "सूरा -बकरा 2 :28
"पुनरपि मरणं पुनरपि जन्मं ,पुनरपि जननी जठरे शयनं "मोह मुद्गर -शंकराचार्य
5 -कर्मों का फल भोगना ही पड़ेगा
"जो एक कण के बराबर भी भलाई करेगा ,उसका फल देख लेगा ,और जो एक कण के बराबर भी बुराई करेगा उसका फल भी देख लेगा "
सूरा -जिल जलाल 99 :7 -8
"अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभा शुभम "गीता
"कोई किसी दूसरे के कर्मों का बोझ नहीं उठा सकेगा ,और न कोई किसी की सहायता कर सकेगा "सूरा- अल फातिर 35 :18
6 -म्रत्यु के बाद क्या होता है
"मौत के बाद अल्लाह लोगों की आत्मा को ग्रस्त कर लेता है .और मृतक के फैसला होने तक रख लेता है .और जब निश्चित समय के बाद फैसला हो जाता है ,तो आत्मा को छोड़ देता है "सूरा- अज जुमुर 39 :42
"जब किसी की मौत आती है ,तो वह कहेगा कि मुझे संसार में वापिस लौटा दो .ताकि मैं जो अधुरा काम छोड़ आया हूँ ,उसे पूरा कर सकूँ .लेकिन हम उसके पुनः जीवित होने तक उस पर बरजख का पर्दा डाल देते हैं .और उम उन लोगों से बात नहीं कर सकते "सूरा -फातिर 35 :22
7 -सात्विक और संयमी लोगों पर कृपा होगी
"मार्गदर्शन और दयालुता केवल सात्विक लोगों के लिए है "सूरा -लुकमान 31 :3
"और जिसने अपनी नफस को वश में कर लिया होगा ,उसका ठिकाना जन्नत ही है "सूरा -अन नाजिआत 79 :40 -41
8 -आत्मा के तीन गुण
1 .शांत -सात्विक मुतमइन्नाمُطمئنّةُ Soul at peace -"हे शांत आत्मा लौट चल अपने प्रभु की ओर तू उस से खुश ,वह तुझ से खुश "
-सूरा -फज्र 89 :27 -28
2 -राजसिक -अम्मारा امّارة( Soul enjoineth evil ) "मैं नहीं कहता कि मैं बुराई से बरी हूँ ,मेरी आत्मा भी मुझे बुराई पर उकसाती है "
सूरा -यूसुफ 12 :53
3 -तामसी लव्वामा لوّامة(Accusing soul ) "नहीं कसम खाता हूँ मलामत करने वाली आत्मा की"सूरा -अल कियामा 75 :2
9 -मृत्यु के बाद आत्मा कहाँ जायेगी
"मनुष्य कहता है कि ,जब मैं मर गया तो फिर से जीवित कैसे किया जाऊँगा ,क्या मनुष्य को पता नहीं है कि ,हम उसे इसी तरह पाहिले भी पैदा कर चुके हैं "
सूरा -मरियम 19 :66 -67
"हमने तुम्हें मर जाने के बाद फिर से पैदा किया है ,ताकि तुम कृतज्ञता प्रकट करो "सूरा -बकरा 2 :56
"संभव है कि तुम्हारा रब (अल्लाह )तुम पर दया कर दे ,लेकिन यदि तुम उसी कुफ्र (गुनाह )के रस्ते पर चलोगे तो ,हम(अल्लाह ) भी तुम्हारे साथ फिर पहिले जैसा ही व्यवहार करेंगे .और फिर से जहन्नम में डाल देंगे "सूरा -बनी इस्राएल 17 :8
(आकर चार लाख चौरासी ,भ्रमत फिरत यह जिव अविनासी
कबहुँक कर करुना नर देही ,देत ईश बिन हेत सनेही .तुलसी दास )
10 -पुनर्जन्म पर इस्लाम के विचार
यद्यपि कुरान और हदीसों में आत्मा द्वारा कर्मों के फल भोगने ,और आत्मा के अमर होने के बारे में जोभी लिखा है ,वह भारतीय दर्शन से पूरी तरह मिलता जुलता है .लेकिन आत्मा के पुनर्जन्म के बारे में केवल संकेत ही दिए गए हैं .और न भारतीयों की तरह मुसलमानों ने पुनर्जन्म के बारे में कोई खोज की है .क्योंकि खुद अल्लाह ने मुसलमानों की अक्ल पर परदा डाल रखा है .
"जब भी तुम कुरान पढ़ना चाहते हो ,हम तुम्हारे और कुरान के बीच में एक परदा डाल देते हैं ,जो तुम्हें कुछ भी समझने से रोक देता है "
सूरा -बनी इस्रायेल 17 :45
मुसलमानों का अध्यात्म और आत्मा के बारे में ज्ञान बहुत ही कम है ,वह हमेशा जिहाद में लगे रहते थे .और यदि कोई आत्मज्ञान के बारे में प्रयत्न भी करता था तो ,अल्ल्लाह उनकी अक्ल पर पर्दा डाल देता था .इसीलिए मुसलमान आत्मा के पुनर्जन्म के बारे ने बहुत कम जानते है .इस्लाम में पुनर्जन्म (Rebirth ) को " تناسُخतनासुख "कहा जाता है .इस्लाम के कई विद्वान् पुनर्जन्म के सिद्धांत को मानते थे .उनमे एक महान सूफी संत "مولانا جلال الدّين رومي بلخيमौलाना जलालुद्दीन रूमी बल्खी "ने अपनी "मसनवी "में आत्मा के पुनर्जन्म के बारे में जो लिखा है ,वह सौ प्रतिशत भगवद गीता के सिद्धांतों से मिलता है .यद्यपि इसका कोई पुख्ता प्रमाण नहीं मिलता है कि मौलाना रूमी कभी भारत में आये थे .लेकिन उनकी किताब "مثنويमसनवी "इस्लाम जगत में इतनी प्रसिद्ध और प्रमाणिक मानी जाती है कि उसे दूसरी कुरान का दर्जा प्राप्त है .और मसनवी के बारे में कहा जाता है कि
"ईं कुराने पाक हस्त दर ज़ुबाने फारसी ایں قرانِِ پاک ہست در زبان فارسی"अर्थात यह पवित्र कुरान है जो फारसी भाषा में है .मसनवी में लिखा है -
"तू अजां रोज़े कि दर हस्त आमदी
आतिश आब ओ ख़ाक ओ बादे बदी
ईं बकाया बर फनाये दीद ई
बर फनाए जिस्म चुन चस्पीद ई
हम चूँ सब्ज़ा बारहा रोईद अम
हफ्त सद हफ्ताद क़ालिब दीद अम "
अर्थात आज जो भी तेरा शरीर है ,वह अग्नि ,जल ,पृथ्वी ,और वायु से बना हुआ है .और किसी पिछले शरीर के नष्ट होने पर तुझे यह शरीर मिला है .इसलिए इस शरीर से इतना मोह क्यों करता है .मैं तो एक पौधे की तरह कई बार उगता आया हुआ हूँ ,यहाँ तक मैंने सात सौ सत्तर जन्म देख लिए है .
"बहूनि मे व्यतीतानि जन्मानी तव चार्जुन "गीता 4 :5

मेरा उद्देश्य इस्लाम को सही ठहराना नहीं है ,बल्कि भारतीय मनीषियों ने आत्मा के पुनर्जन्म के बारे में जो भी सत्य प्रतिपादित किया है उसे सही साबित करना है .जिसे आज भी कई वैज्ञानिक सही मानाने लगे हैं .हर साल हरेक देश और हरेक धर्म के लोगों में पुनर्जन्म के प्रमाण मिल रहे हैं .इसके बारे में एक किताब "Born Again "भी छप चुकी है .इसमे ऐसे कई उदहारण दिए गए हैं ,जो शत प्रतिशत सही निकले हैं .चाहे मुसलमान कुछ भी कहें .पुनर्जन्म एक अटल सत्य है .मुसलमान इसका सिर्फ इसलिए विरोध करते हैं ,क्योंकि यह सिद्धांत भारत के सभी धर्मों में मान्य है .और मुसलमान हर भारतीय मान्यता के शत्रु है .
लेकिन जब हिन्दुओं को गुमराह करके उनको मुसलमान बनाने बात आती है ,तो मुहम्मद जैसे अत्याचारी को ,भगवान बुद्ध (मैत्रेय )का अवतार बता देते हैं या कभी मुहम्मद को कल्कि और अंतिम अवतार कह देते है .फिर भी यदि मुसलमानों ने हमारे धर्मों से कुछ चुराकर अपने धर्म में शामिल कर लिया है ,तो इस्लाम को सच्चा धर्म नहीं नहीं कहा जा सकता है .फिर भी मुसलमान अपने मतलब के लिए मुहम्मद को किसी का भी अवतार बता देते हैं
यदि मुसलमान मुहमद को कल्कि का अवतार कहते हैं ,तो वराह को मुहम्मद का अवतार क्यों नहीं मान सकते ?



सूरा फातिहा का वैदिक आधार !

हमारे सभी सम्माननीय जागरुक पाठक ,जो इस ब्लॉग को लगातार पढ़ते आये हैं ,वह इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं ,कि जब मुस्लिम ब्लोगरों के पास कोई समुचित ,तर्कपूर्ण उत्तर नहीं होता ,या उनके पास कोई प्रमाण नहीं होता ,तो वह लोग गाली गलौच पर उतर जाते हैं .और इस तरह से अपनी बात को सही सिद्ध करने का प्रयास करते हैं .कुछ ऐसे मुस्लिम ब्लोगर हैं ,जो अपना नाम गुप्त रखते हैं .अक्सर यह लोग अश्लील भाषा का प्रयोग करके लोगों को मुख्य विषय से भटका देते हैं .जिस से विषय कि गंभीरता कम हो जाती है .बड़े दुःख कि बात है कि इन फर्जी लोगों के उकसाने पर हमारे मित्र भी उनकी भाषा बोलने लगते हैं ,यही तो यह मुस्लिम ब्लोगर चाहते हैं .
अभी कुछ समय से जावेद खान नाम का व्यक्ति भद्दे कमेन्ट दे रहा है .इसने 7 अप्रेल 2011 को अपने कमेन्ट में मुझ से कुरान की पहिली सूरा(chapter )
अल फातिहा -الفاتحه -के बारे में सवाल किया है .मैं ने सूरा फातिहा ,और बिस्मिलाह के बारे में दो लेख प्रकाशित किये थे -
1 -कैरानावी को मुंहतोड़ जवाब :सूरा फातिहा में रद्दोबदल हुआ है दिनांक 24 /7 /2010
2 -कुरआन में बिस्मिल्लाह दोहरानेवाले काफ़िर हैं .दिनांक 27 /7 /2011
यदि लोग इन लेखों को पढ़ लें तो उनकी शंका दूर हो जायेगी .फिर भी मैं सूरा फातिहा के बारे में कुछ और जानकारी दे रहा हूँ .सूरा फातिहा कुरान की पहिली नहीं पांचवीं सूरा है (नुजूल की तरतीब से )इसे मुहम्मद की मौत के बाद कुरान में सबसे पहिले कर दिया गया है .
मुसलमान सूरा फातिहा को हर नमाज में पढ़ते हैं .फातिहा अर्थ "खोलना "है यह अरबी के(ف ت ح फ त ह )शब्द से बना है
सूरा फातिहा में अल्लाह से दुआ की गयी है की वह हमें सीधे रस्ते पर चलने की कृपा करे .इस सूरा में कुल सात आयतें (Verses )हैं जिनके अर्थ इस प्रकार हैं -
1 -सूरा फातिहा में क्या है
"सब तारीफ अल्लाह के लिए है ,जो सारे संसार का पालनकर्ता है " आयत .1
"अत्यंत कृपालु और मेहरवान है "आयत .2
"न्याय के दिवस का स्वामी है "आयत .3
"हम तेरी ही बंदगी करते हैं ,और तुझी से ही मदद चाहते हैं "आयत 4
"मुझे सीधा रास्ता दिखा "आयत .5
"उन लोगों का मार्ग दिखा जिन पर तुने कृपा की "आयत .6
"न की उन लोगों का मार्ग दिखा ,जिनपर तेरा प्रकोप हुआ ,और जो भटक गए "आयत .7
(यह सब अर्थ इब्ने कसीर की तफ़सीर पर धारित है ,जो चाहे देख ले )
2 -सूरा फातिहा का वैदिक अधार
इस बात को सभी मानते हैं कि वेद कुरान से हजारों साल पूर्व मौजूद थे .वेदों में लाखों ऐसे मन्त्र हैं ,जिनमे ईश्वर से प्रार्थना की गयी है ,कि वह हमें सीधे रस्ते (सुपथ )पर चलने की शक्ति प्रदान करे .इसी प्रकार का एक मन्त्र यजुर्वेद में मिलता है .जिसका आशय और शब्द सूरा फातिहा से मिलते हैं .यद्यपि सूरा फातिहा और वेदमंत्र के वाक्यों के क्रम में अंतर है .लेकिन दौनों का आशय और भावार्थ एक ही है .क्योंकि एक ही बात को दूसरी भाषा में कहने से शब्दों के क्रम का बदल जाना स्वाभाविक है .हम वेद मन्त्र दे रहे है -

"अग्ने नय सुपथा राये अस्मान विश्वानि देव वयुनानि विद्वान्
युयोध्यस्म जुहुराण मेनो भूयिष्ठाम ते नम उक्तिम विधेम "यजुर्वेद -अध्याय 40 मन्त्र 18
(यही मन्त्र ईशोपनिषद में इसी तरह मिलता है )
इसका अर्थ है -हे जगत पालन करता स्वामी ,हमें सीधे रास्ते (सन्मार्ग ) पर के चल ,तू हमारे कर्मों का ज्ञाता और फलदाता है .हमें पाखंडियों के रास्ते से दूरकर विद्वानों के रस्ते पर ले चल .हम तेरे सामने अनेकों बार प्रणाम करते हैं .
(यह गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित 'ईशावास्योपनिषद के शंकर भाष्य से लिया गया है .पेज 45 )
अब सूरा फातिहा और इस वेदमंत्र के भावार्थ की तुलना कीजिये .हम वेद मन्त्र के अलग अलग पदच्छेद की तुलना सूरा फातिहा से करते हैं और साथ में सूरा फातिहा की आयातों के नंबर भी दे रहे है -
3 -सूरा फातिहा और वैदिक मन्त्र की समानता
अब दिए गए वेदमंत्र के अन्वयों के साथ अरबी (हिंदी अक्षरों में )अरबी और उसके अर्थ दिए जा रहे है ,साथ में आयत नंबर भी दिया गया है -
1 -नय सुपथा राये अस्मान -इहदिनास्सिरातिल मुस्तकीम - اهدنا الصراط المستقيم-हमें सीधा रास्ता दिखा .आयत .5
2 -विश्वानि देव -रब्बिल आलमीन - ربِّ العالمين-दुनिया का मालिक .आयत .1
3 -वयुनान विद्वान -मालिक यौमिद्दीन - مالك يوم الدّين-कर्मों को जानने वाला न्यायी .आयत .3
4 -युयोद्ध्स्म जुहुराण मेनो-गैरिल मगजूबी अलैहिम वलाज्जालीन-غيرالمغضوب عليهم ولاالضّالّين - उन लोगों का मार्ग नहीं जो भटक गए ,जिन पर तेरा प्रकोप हुआ .
5 -भूयिष्ठाम ते नम उक्तिम विधेम -इय्याक नअबुदू व् इय्याक नस्तईन - ايّاك نعبد واياك نستعين-हम तेरी ही उपासना करते हैं और तुझेही प्रणाम करते हैं
अब सूरा फातिहा और इस वेदमंत्र की तुलना करनेपर सबका भ्रम जरुर मिट गया होगा .यह मुझे विश्वास है .क्योंकि एकही बात को कई तरह से भिन्न भिन्न शब्दों में व्यक्त किया जा सकता है .लेकिन उसका तात्पर्य एक ही होना चाहिए .हमें शब्दों के जाल में न फसते हुए उसके आशय पर ध्यान देना चाहिए .जैसा कि एक शायर ने कहा है-
"अल्फाज़ के पेचों में उलझते नहीं दाना .गव्वास को मतलब है गुहर से ,न सदफ से "
अर्थात विद्वान् लोग शब्दों के पेचों में नहीं उलझते हैं .जैसे गोताखोर मोतियों को उठा लेते हैं ओर सीपियों को छोड़ देते हैं .
अब आखिर में मैं जनाब जावेद खान से पूछता हूँ कि सूरा फातिहा में अल्लाह को "रब्बिल आलमीन ربّ العالمين"क्यों कहा है ?और इसकी जगह अल्लाह को
"रब्बिल मुस्लमीनربّ المسلمين"क्यों नहीं कहा गया ?क्या अल्लाह गैर मुस्लिमों का रब नहीं है ?क्या उनको खाना नहीं देता ?फिर जिहाद के नामपर आतंक क्यों फैला रहे हो ?हमें कुछ कहने पहिले सूरा फातिहा के एक एक शब्द को ध्यान से पढो .फिर विचार करो तुम उस पर कितना अमल करते हो .मुझे बददुआ देने से कुछ नहीं होगा
"तेरी दुआ है कि तेरी दुआएं हों मंजूर ,मेरी दुआ है कि तेरी दुआ बदल जाये "



राक्षसी रिवाज :शैतानी शरीयत !!

मुसलमान भारत को दारुल हरब यानी काफिरों का देश कहते हैं .इसीलिए उन्होंने देश का विभाजन करवा कर पाकिस्तान बनवा लिया था .आज पकिस्तान उनके लिए आदर्श इस्लामी देश है .क्योंकि वहां पर शरीयत का कानून चलता है ,जो कुरआन और हदीसों के अनुसार बताया जाता है . लेकिन कुरआन और हदीसों में परस्पर विरोधी ,तर्कहीन ,और महिला विरोधी आदेशों की भरमार है .मुसलमान इतने मक्कार हैं की उन आदेशों में जो उनके लिए लाभकारी होता है ,उसे स्वीकार कर लेते हैं .और जो महिलाओं के पक्ष में होता है उसे गलत कहते हैं .पकिस्तान में सन 1979 में शरीयत का कानून लागू कर दिया गया था जिसे हुदूद मसौदा "Hudud Ordinence "कहा जाता है . लेकिन पाकिस्तान के कई प्रान्तों जैसे सिंध ,बलूचिस्तान ,पजाब के कुछ भागों और सूबाए सरहद के आलावा अन्य क्षेत्रों में कबाइली कानून और रिवाज चलते हैं .इनमे सारे फैसले वहां की "जिरगा "या पंचायत ही कराती है .यह जिरगा मौत की सजा भी दे सकती है .और अक्सर जिरगा के फैसले बेतुके ,अमानवीय और महिला विरोधी होते हैं .लेकिन हदीसों के हवाले देकर इन फैसलों का कोई विरोध नहीं होता .इसके इन्हीं जंगली हदीसों के कारण वहां पर कई राक्षसी रिवाज भी प्रचलित हो गए है जिन्हें बलपूर्वक मनवाया जाता है .और कहा जाता है कि यह रसूल कि सुन्नत है .यानि रसूल भी यही करते थे ,अथवा यह रिवाज हदीसों और कुरान के अनुसार सही है . यहाँ कुछ रिवाजों के नाम ,और और कुरान और हदीसों से उनका आधार बताया जा रहा है ,कि इन रिवाजों के पीछे कौन सी आयत या हदीस है .पता चला है कि देखादेखी यह राक्षसी रिवाज भारत के मुसलामानों में फ़ैल रहे हैं .और लोग इन्हें शरियत मान रहे है .

1 -सट्टा वट्टा. سٹّہ وٹّہ Satta Watta

इसका मतलब है "पत्नी विनिमय "या Barter Marriage "अक्सर मुसलमान आपस में ही लड़ते रहते हैं .और कई बार मामला गंभीर होजाने से जिरगा या पंचायत के पास चला जाता है .जब झगड़ा किसीभी तरह से नहीं सुलझाता है तो ,जिरगा ऐसे दौनों पक्षों के परिवार जिनके लडके और लड़कियां हों ,आपस में शादियाँ करा देता है .यानी किसी एक परिवार के लडके की दूसरे परिवार की लड़की से शादी करा दी जाती है .और विवाद का निपटारा हो जाता है .जादातर लोग यह फैसला मान लेते हैं .लेकिन यदि कोई परिवार नहीं मानता है तो ,जिरगा बच्चों की जबरदस्ती शादी करा देता है .यह रिवाज सिंध ,बलूचिस्तान ,पंजाब और सीमांत प्रान्त में प्रचलित है .इसका आधार यह हदीस है -

"अबू हुरैरा ने कहा कि,इब्ने नुमैर ने एक बार रसूल से पूछा कि ,मैं ने अपने पडौसी से कहा कि ,यदि वह अपनी लड़की का हाथ मेरे हाथों में दे देगा तो ,मैं अपनी बहिन की शादी उसके साथ कर दूँगा .क्या ऐसा करना उचित होगा .रसूल ने कहा इसमे कोई बुराई नहीं है ,बल्कि इस से एक मुसलमान दूसरे मुसलमान से जुड़ जाता है .और मनमुटाव ख़त्म होता है.सहीह मुस्लिम -किताब 8 हदीस 3299 .

2 -कारोकारी . کاروکاریKaroKari

इज्जत के लिए ह्त्या Honour Killing .चूँकि इस्लाम में औरतों को परदे रखने का हुक्म है ,और यदि लड़कियाँ किसी लडके से बात भी करती हैं ,तो इसे बेशर्मी और गुनाह माना जाता है .और औरतों को घर में ही कैद रखा जाता है .इसका आधार यह हदीसें है .-

"अबू हुरैरा ने कहा कि रसूल ने कहा कि औरतें ,गधा ,और कुत्ते लोगों का ईमान बिगड़ देते हैं ,इसलिए इनको एक जगह बांध कर रखना जरूरी है .यह बाहर जाकर ख़राब हो जाते हैं ".सही मुस्लिम -किताब 4 हदीस 1034

"अब्दुला इब्ने अब्बास ने कहा कि ,रसूल ने कहा है कुत्ता ,गधा ,यहूदी ,पारसी (मजूसी )और लड़कियां इमानबिगड़ देते हैं ,इनको बाहर नहीं रहने देना चाहिए ".अबू दाऊद-किताब 2 हदीस 704

"सईदुल खुदरी ने कहा कि ,रसूल ने कहा है औरतें ,ऊंट और गुलाम सब एक जैसे हैं .इनको आजादी नहीं देना चाहिए .यह आजादी देने से काबू में नहीं आ सकते हैं "अबू दाऊद -किताब 4 हदीस 2155

अब यदि कोई लड़का या लड़की आपस में प्रेम करने लगते हैं ,या शादी करना चाहते हैं ,तो इसे बदचलनी और इस्लाम के विरुद्ध माना जाता है .और लोग उस परिवार का अपमान करते है .या समाज से निकाल देते है .दोनो परिवार अपनी बदनामी से बचने के लिए उस प्रेमी जोड़े कीहत्या कर देते है .दुःख की बात यह है कि यह हत्याएं उन बच्चों के बाप ,बड़े भाई ,या सम्बन्धी ही करते है .और इस बात को छुपा देते हैं .भारत में भी यह कुरीति आ गयी है .यहाँ सगोत्र ,या अन्य जाती में शादी करने पर हत्या कर दी जाती है .लेकिन मुसलमानों में गोत्र का या जाती का सवाल ही नहीं है .वहां केवल इन हदीसों के कारण ही हत्या करते हैं .सन 2004 में सिंध में 2700 और पंजाब में 2005 में 1300 लड़कों और 3451 लड़कियों की हत्या कर दी गई थी .इस का सारा पाप मुहमद पर पड़ेगा .

यहाँ भी इस कुरीति का विरोध होना चाहिए .यह महा पाप है .

3 -पेटलिखी .پیٹ لکهی Pait Likkhi .

इसका अर्थ है कि बच्चों के जन्म से पूर्व ही उनकी शादी तय कर देना .Arrangin Marriages in the Womb .अक्सर कई मुस्लिम परिवार एक साथ रहते हैं .और एक ही मकान में रहते है .मुसलमानों में चचेरे ,ममेरे भाइयों और बहिनों में शादी हो जाती है .जब किन्हीं भाइयों की औरतें एक ही समय गर्भवती हो जाती है ,तो घर के बुजुर्ग बच्चों के पेट में होते ही आपस में तय कर लेते है की ,अगर अमुक के घर लड़का होगा ,और अमुक के घर लड़की होगी तो ,उनकी आपस में शादियाँ करा देंगे .यह बात काजी के सामने लिखी जाती है .और दौनों तरफ के लोगों के सही कराये जाते है .बाद में यदि कोई इस बात से मुतारता है ,तो उस पर जिरगा जुरमाना लगा देती है .चूंकि यह अनुबंध पेट के बच्चों के लिए होता है ,उस पर बाल विवाह का कानून नहीं लगता ..इसका अधार यह आयतें और हदीसें है -

"अल्लाह माता के पेट में ही जोड़े बना देता है "सूरा-अज जुमुर 39 :4 -6

"हमने हरेक के शकुन अपशकुन को गले में बांध दिया है "सूरा -बनी इस्राएल 17 :13

"गर्भ में क्या है अल्लाह यह जानता है ,"सूरा -हूद 11 :5 .

4 -अड्डोवद्ड़ो. اڈّووڈّو Addo Vaddo

जिन परिवारों में किसी न किसी बात पर विवाद या झगड़े चलते रहते हैं ,वे आपसी झगडा निपटने के लिए एक दुसरे के बच्चों की शादी करा देते हैं .यह एक प्रकार का Child Marriage है .यह रिवाज सिंध पंजाब और बलूचिस्तान में प्रचलित है.इसका आधार यह हदीस है -

"आयशा ने कहा कि जब मैं 6 साल कि थी ,मेरे माँ बाप में मेरी शादी रसूल के साथ कर दी थी और जब मैं 9 साल की हुई तो रसूल ने मेरे साथ सम्भोग किया था "बुखारी -जिल्द 7 किताब 62 हदीस 64

इसी हदीस की आड़ लेकर 21 मई 2010 को एक 25 साल के युवक ने एक 6 साल की बच्ची से शादी की थी .और शरई कानून ने उसे जायज बताया था .आज भी पाकिस्तान में छोटी छोटी बच्चियों की शादियाँ होती है ,जिस से कई बच्चियां मर जाती है ,

5 -विन्नी . وِنّی Vinni

यह पश्तो शब्द है . वैसे तो इसका अर्थ है क्षतिपूर्ति या बदला है ,लेकिन किसी की शारीरिक हनी ,या हत्या के बदले में अपराधी से औरतें ली जाती है "Women as Compesation"यह प्रथा सीमांत प्रान्त ,बलूचिस्तान ,और स्वात में अधिक है .इसे उर्दू में दिय्यत دِیَّت Diyyat कहा जाता है .इसके बारे में कुरानऔर हदीसों में यह लिखा है-

"यदि कोई ईमान वाला भूल से या जानबूझकर किसी ईमान वाले ला वध कर दे ,तो मारे गए व्यक्ति के परिवार को एक आदमी सौंपना होगा .और खून के बदले धन भी देना होगा "सूरा -अन निसा 4 :92

"एक पुरुष के बराबर दो स्त्रियाँ होंगीं "सूरा-निसा -4 :11

"यदि मारा गया व्यक्ति पागल हो तो उसकी दिय्यत आधी होगी .और मारी गयी औरत की दिय्यत मर्दों की कीमत से आधी होगी .यानि एक मर्द की हत्या के बदले दो औरतें देना होंगी .और औरत की आयु अगर सात साल से कम हो तो दो छोटी बच्चियों से काम चलाओ ."

बुखारी -जिल्द ५ किताब 59 हदीस 709 .और बुखारी -जिल्द 7 किताब 62 हदीस 64

(नोट -इस के मुताबिक एक मर्द के हया के बदले दो औरतें ,या 7 साल से कमकी चार बच्चियां देना होंगी )

फिर जो औरतें या बच्चियांबदले में ली जाती हैं ,उनसे मृतक के परिवार के लोग गुलामी करते हैं .और सब मिल कर बलात्कार भी करते हैं .कई जगह जमीदारों ने अपने निजी जेल भी बना रखे है

.6 -सवरा. سوَرا Swara

इसका अर्थ है शारीरिक क्षति की भरपाई BloodFeud .यदि कोई किसी व्यक्ति के शरीर स्थायी को नुकसान करता है तो ,उसले बदले जो लिया जाता है उसे सवरा कहा जाता है .यह रिवाज भी कई स्थानों में है .कुरान में लिखा है-

"हे ईमान वालो ,बदला लेने में बराबरी होना जरूरी ठहरा दिया गया है ,आजाद का बदला आजाद ,गुलाम का बदला गुलाम ,स्त्री का बदला स्त्री .फिर यदि स्त्री के भाई की तरफ से कोई दिया जाये तो उसे उत्तम रीति से निपटा देना चाहिए .बदला लेना ही बुद्धिमानों का जीवन है "

सूरा -बकरा 2 :178 और 179

"हमने तुम्हें हुक्म दिया है कि जान के बदले जान ,आँख के बदले आंख ,कण के बदले कान ,नाक के बदले नाक ,दांत के बदले दांत और हरेक घाव के बदले घाव है "

सूरा -मायादा 5 :45 .

इन आयातों के अनुसार यदि कोई बदले में बहुत अधिक धन नहीं दे पाताहै तो ,लोग दिय्यत में उसकी लड़की या बहिन को लेने के हकदार होते हैं ,या जिरगा जबरदस्ती शादी करा देती है .आज भी पाकितान की अदालतों में ऐसे हजारों मामले पड़े हैं .क्रिकेटर इमरान खान की पार्टी ऐसे मामले उठती रहती है .लेकिन शरियत के आगे कुछ नहीं कर पाती है.

7 -वुलवार.وُلوار Vulvar

महिला खतना Female Genital Mutilation ,इसके बारे में पिछले लेखों में विस्तार से दिया गया है .इसमे चार से पांच साल की बच्चियों की योनी की भगनासा (Clitoris )और उसके आसपास के भगोष्ठ को छील दिया जाता है .कई बार इस से बच्चियों की मौत भी हो जाती है .

सब जानते हैं कि मुसलमान हफ़्तों तक नहीं नहाते .वह इसे रसूल कि सुन्नत मानते हैं .मुसलमान नहाने से बचने के लिए बच्चियों कि खतना करा देते हैं .हदीस में कहा है कि

"यदि कोई खतना वाले पुरुष का अंग (लिंग )किसी बिना खतना वाली स्त्री के अंग (योनी )में प्रवेश करता है ,तो उस पुरुष को गुस्ल(स्नान )करना जरुरी है "सही मुस्लिम -किताब 3 हदीस 684 .

इसलिए मुसलमान बार बार नहाने से बचने के लिए लड़कियों कि खतना करा देते है .फिर मुहम्मद ने भी कहा था कि -

"उम्मे आत्तिय्या अन्सारिया ने कहा कि ,मदीना में एक औरत एक बच्ची की खतना कर रही थी .रसूल वहां गए और उस औरत से कहा कि इस बच्ची कि योनी को इतनी गहरायी से मत छीलना जिस से योनी कुरूप हो जाये ,और इस बच्ची के पति को पसंद न आये "

सहीह मुस्लिम -किताब 41 हदीस 3251

8 -औरतोंकी गवाही

अल्लाह और मुहमद औरतों को आधा प्राणी (Half Human )मानते थे .मुहम्मद की कई कई औरतें थी .और अल्लाह कुंवारा है .इसलिए यह औरतोंकी कद्र नहीं करते .इस्लामी कानून में औरतों की आधी कीमत है -

"औरतों की दिय्या(मौत की कीमत )मर्दों से आधी होगी" .सूरा -निसा 4 :92

"एक मर्द गवाह के विरुद्ध प्रमाण देने के लिए दो औरतों की गवाही लाना पड़ेगा .यदि दस मर्द हों तो उनके विरुद्ध साक्ष्य देने के लिए 21 औरतों की गवाही जरूरी है "बुखारी -जिल्द 1 किताब 6 हदीस 301

"दो औरतों की गवाही एक मर्द के बराबर मानी जायेगी "सूरा -बकरा 2 :282

यही कारण है कि अरब ,ईरान या पाकिस्तान में यदि किसी औरत पर बलात्कार होता है ,तो वह पूरे गवाह पेश नहीं कर पाती है .फिर शरई अदालतें उन पर व्यभिचार का आरोप लगा कर पत्थर मार कर मौत की सजा दे देती हैं ऐसे कई मामले अक्सर आते रहते हैं .

तात्पर्य यह है इस्लाम कुरान ,और मुहम्मद केवल गैर मुस्लिमों के लिए अभिशाप नहीं है ,बल्कि खुद मुस्लिम औरतो के लिए लानत है .इस्लामी कानून मुस्लिम औरतो की आजादी लिए बाधक है .और कुरआन और हदीसें सारी कुरीतियों की जननी हैं .

छोड़ दो ऐसा जंगली इस्लाम ,और फेक दो बेतुकी कुरआन और हदीसें !



ज़फरनामा :गुरु गोविन्द सिंह का पत्र !

भारत अनादिकाल से हिन्दू देश रहा है .इस देश में जितने भी धर्म ,संप्रदाय ,और मत उत्पन्न हुए हैं ,उन सभी के अनुयायी ,इस देश के वास्तविक उतराधिकारी हैं.लेकिन जब भारत पर इस्लामी हमलावरों का शासन हुआ तो ,उन्होंने हिन्दू धर्म और हिन्दुओं को मिटाने के लिए हर तरह के यत्न किये .आज जो हिन्दू बचे हैं ,उसके लिए हमें उन महापुरुषों का आभार मानना चाहिए जिन्होंने अपने त्याग और बलिदान से देश और हिन्दू धर्म को बचाया था .
इनमे गुरु गोविन्द सिंह का बलिदान सर्वोपरि और अद्वितीय है .क्योंकि गुरूजी ने धर्म के लिए अपने पिता गुरु तेगबहादुर और अपने चार पुत्र अजीत सिंह ,जुझार सिंह ,जोरावर सिंह और फतह सिंह को बलिदान कर दिया था .बड़े दो पुत्र तो चमकौर के युद्ध में शहीद हो गए थे .और दो छोटे पुत्र जोरावर सिंह (आयु 8 )साल और फतह सिंह (आयु 5 )साल जब अपनी दादी के साथ सिरसा नदी पार कर रहे तो अपने लोगों से बिछड़ गए थे .जिनको मुसलमान सूबेदार वजीर खान ने ठन्डे बुर्ज में सरहिंद में कैद कर लिया था.वजीर खान ने पहिले तो बच्चों को इस्लाम काबुल करने के लिए लालच दिया .जब बच्चे नहीं मानेतो मौत की धमकी भी दी .लेकिन बच्चों ने कहा कि हमारे दादा जी ने धर्म कि रक्षा के लिए दिली में अपना सर कटवा लिया था .हम मुसलमान कैसे बन सकते हैं ?हम तेरे इस्लाम पार थूकते हैं .(गुरु तेगबहादुर ने 16 नवम्बर 1675 को हिन्दू धर्म कि रक्षा के लिए अपना सर कटवा लिया था )बच्चों का जवाब सुनकर वजीर खान आग बबूला हो गया .उसने दौनों बच्चों को एक दीवाल में जिन्दा चिनवानेका आदेश दे दिया .और उन्हें शहीद कर दिया .यह सन 1705 कीबात है .
उस समय देश परऔरंगजेब की हुकूमत थी .वह इस्लाम का जीवित स्वरूप था .मुसलमान उसे अपना आदर्श मानते है .यदि कोई औरंगजेब की नीतियों और उसके चरित्र को समझ ले तो उसे कुरान और शरीयत को समझनेकी कोई जरुरत नहीं होगी .आज भी मुसलमान उसका अनुसरण करते है
जब गुरूजी को बच्चों के दीवाल में चिनवाएजाने की खबर मिली तो वह हताश नहीं हुए .गुरुजी चाहते थे कि लोग अपनी कायरता को त्याग करके निर्भय होकर अत्याचारी मुगलों का मुकाबला करें .तभी धर्म कि रक्षा हो सकेगी .इसके लिए गुरूजी ने अस्त्र -शस्त्र की उपासना की रीति चलाई .-
"वाह गुरूजी का भयो खालसा सु नीको.वाह गुरुजी मिल फ़तेह जो बुलाई है .
धरम स्थापने को ,पापियों को खपाने को ,गुरु जपने की नयी रीति यों चलाई है ."
गुरु गोविन्द सिंह जी ने लोगों को सशस्त्र रहने का उपदेश दिया .अस्त्र शस्त्र को धर्म का प्रमुख अंग बताया ,ताकि लोगों के भीतर से भय निकल जाये .गुरूजी ने कहा कि-
"नमो शस्त्र पाणे,नमो अस्त्र माणे.नमो परम ज्ञाता ,नमो लोकमाता .
गरब गंजन ,सरब भंजन ,नमो जुद्ध जुद्ध ,नमो कलह कर्ता.नमो नित नारायणे क्रूर कर्ता .-जाप साहब
फिर गुरूजी ने यह भी कहा -
"चिड़ियों से मैं बाज लड़ाऊँ ,सवा लाख से एक भिडाऊं.तबही नाम गोविन्द धराऊँ "
गुरुजी ने अपने इस में आने का यह कारण खुद ही बता दिया था .
"इस कारण प्रभु मोहि पठाओ ,तब मैं जगत जमम धर आयो .
धरम चलावन संत उबारन,दुष्ट दोखियन पकर पछारन"
गुरु गोविन्द सिंह जी एक महान योद्धा होने के साथ साथ महान विद्वान् भी थे .वह ब्रज भाषा ,पंजाबी ,संस्कृत और फारसी भी जानते थे .और इन सभी भाषाओँ में कविता भी लिख सकते थे .जब औरंगजेब के अत्याचार सीमा से बढ़ गए तो गुरूजी ने मार्च 1705 को एक पत्रभाई दयाल सिंह के हाथों औरंगजेब को भेजा .इसमे उसे सुधरने की नसीहत दी गयी थी .यह पत्र फारसी भाषा के छंद शेरों के रूप में लिखा गया है .इसमे कुल 134 शेर हैं .इस पत्र को "ज़फरनामा "कहा जाता है .यद्यपि यह पत्र औरंगजेब के लिए था .लेकिन इसमे जो उपदेश दिए गए है वह आज हमारे लिए अत्यंत उपयोगी हैं .इसमे औरंगजेब के आलावा इस्लाम ,कुरान ,और मुसलमानों के बारे में जो लिखा गया है ,वह हमारी आँखें खोलने के लिए काफी हैं .इसी लिए ज़फरनामा को धार्मिक ग्रन्थ के रूप में स्वीकार करते हुए दशम ग्रन्थ में शामिल किया गया है .
जफरनामा से विषयानुसार कुछ अंश प्रस्तुत किये जा रहे हैं .ताकि लोगों को इस्लाम की हकीकत पता चल सके -
1 -शस्त्रधारी ईश्वर की वंदना
बनामे खुदावंद तेगो तबर ,खुदावंद तीरों सिनानो सिपर .
खुदावंद मर्दाने जंग आजमा ,ख़ुदावंदे अस्पाने पा दर हवा .2 -3
उस ईश्वर की वंदना करता हूँ ,जो तलवार ,छुरा ,बाण ,बरछा और ढाल का स्वामी है.और जो युद्ध में प्रवीण वीर पुरुषों का स्वामी है .जिनके पास पवन वेग से दौड़नेवाले घोड़े हैं .
2 -औरंगजेब के कुकर्म
तो खाके पिदर रा बकिरादारे जिश्त,खूने बिरादर बिदादी सिरिश्त.
वजा खानए खाम करदी बिना ,बराए दरे दौलते खेश रा .
तूने अपने बाप की मिट्टी को अपने भाइयों के खून से गूँधा,और उस खून से सनी मिटटी से अपने राज्य की नींव रखी.और अपना आलीशान महल तैयार किया .
3 -अल्लाह के नाम पर छल
न दीगर गिरायम बनामे खुदात ,कि दीदम खुदाओ व् कलामे खुदात .
ब सौगंदे तो एतबारे न मांद,मिरा जुज ब शमशीर कारे न मांद .
तेरे खुदा के नाम पर मैं धोखा नहीं खाऊंगा ,क्योंकि तेरा खुदा और उसका कलाम झूठे हैं .मुझे उनपर यकीन नहीं है .इसलिए सिवा तलवार के प्रयोग से कोई उपाय नहीं रहा .
4 -छोटे बच्चों की हत्या
चि शुद शिगाले ब मकरो रिया ,हमीं कुश्त दो बच्चये शेर रा .
चिहा शुद कि चूँ बच्च गां कुश्त चार ,कि बाकी बिमादंद पेचीदा मार .
यदि सियार शेर के बच्चों को अकेला पाकर धोखे से मार डाले तो क्या हुआ .अभी बदला लेने वाला उसका पिता कुंडली मारे विषधर की तरह बाकी है .जो तुझ से पूरा बदला चुका लेगा .
5 -मुसलमानों पर विश्वास नहीं
मरा एतबारे बरीं हल्फ नेस्त,कि एजद गवाहस्तो यजदां यकेस्त.
न कतरा मरा एतबारे बरूस्त ,कि बख्शी ओ दीवां हम कज्ब गोस्त .
कसे कोले कुरआं कुनद ऐतबार ,हमा रोजे आखिर शवद खारो जार .
अगर सद ब कुरआं बिखुर्दी कसम ,मारा एतबारे न यक जर्रे दम .
मुझे इस बात पर यकीन नहीं कि तेरा खुदा एक है .तेरी किताब (कुरान )और उसका लाने वाला सभी झूठे हैं .जो भी कुरान पर विश्वास करेगा ,वह आखिर में दुखी और अपमानित होगा .अगर कोई कुरान कि सौ बार भी कसम खाए ,तो उसपर यकीन नहीं करना चाहिए .
6 -दुष्टों का अंजाम
कुजा शाह इस्कंदर ओ शेरशाह ,कि यक हम न मांदस्त जिन्दा बजाह .
कुजा शाह तैमूर ओ बाबर कुजास्त ,हुमायूं कुजस्त शाह अकबर कुजास्त .
सिकंदर कहाँ है ,और शेरशाह कहाँ है ,सब जिन्दा नहीं रहे .कोई भी अमर नहीं हैं ,तैमूर ,बाबर ,हुमायूँ और अकबर कहाँ गए .सब का एकसा अंजाम हुआ .
7 -गुरूजी की प्रतिज्ञा
कि हरगिज अजां चार दीवार शूम ,निशानी न मानद बरीं पाक बूम .
चूं शेरे जियां जिन्दा मानद हमें ,जी तो इन्ताकामे सीतानद हमें .
चूँ कार अज हमां हीलते दर गुजश्त ,हलालस्त बुर्दन ब शमशीर दस्त .
हम तेरे शासन की दीवारों की नींव इस पवित्र देश से उखाड़ देंगे .मेरे शेर जबतक जिन्दा रहेंगे ,बदला लेते रहेंगे .जब हरेक उपाय निष्फल हो जाएँ तो हाथों में तलवार उठाना ही धर्म है .
8 -ईश्वर सत्य के साथ है .
इके यार बाशद चि दुश्मन कुनद ,अगर दुश्मनी रा बसद तन कुनद .
उदू दुश्मनी गर हजार आवरद ,न यक मूए ऊरा न जरा आवरद .
यदि ईश्वर मित्र हो ,तो दुश्मन क्या क़र सकेगा ,चाहे वह सौ शरीर धारण क़र ले .यदि हजारों शत्रु हों ,तो भी वह बल बांका नहीं क़र सकते है .सदा ही धर्म की विजय होती है.
गुरु गोविन्द सिंह ने अपनी इसी प्रकार की ओजस्वी वाणियों से लोगों को इतना निर्भय और महान योद्धा बना दिया कि अज भी मुसलमान सिखों से उलझाने से कतराते हैं .वह जानते हैं कि सिख अपना बदला लिए बिना नहीं रह सकते .इसलिए उनसे दूर ही रहो .पंजाबी कवि भाई ईसर सिंह ईसर ने खालसा के बारे में लिखा है -
"नहला उत्ते दहला मार बदला चुका देंदा ,रखदा न किसीदा उधार तेरा खालसा ,
रखदा कुनैन दियां गोलियां वी उन्हां लयी,चाह्ड़े जिन्नू तीजेदा बुखार तेरा खालसा .
पूरा पूरा बकरा रगड़ जांदा पलो पल ,मारदा न इक भी डकार तेरा खालसा ."
इसी तरह एक जगह कृपाण की प्रसंशा में लिखा है -
"हुन्दी रही किरपान दी पूजा तेरे दरबार विच ,तूं आप ही विकिया होसियाँ सी प्रेम दे बाजार विच .
गुजरी तेरी सारी उमर तलवार दे व्योपार विच ,तूं आपही पैदा होईऊं तलवार दी टुनकार विच .
तूं मस्त है ,बेख़ौफ़ है इक नाम दी मस्ती दे नाल ,सिक्खां दी हस्ती कायम है तलवार दी हस्ती दे नाल .
लक्खां जवानियाँ वार के फिर इह जवानी लाई है ,जौहर दिखाके तेग दे ,तेगे नूरानी लाई है .
तलवार जे वाही असां पत्त्थर चों पानी काढिया,इक इक ने सौ सौ वीरां नूं वांग गाजर वाड्धीया."
इस लेख का एकमात्र उद्देश्य है कि आप लोग गुरु गोविन्द साहिब कि वाणी को आदर पूर्वक पढ़ें ,और श्री गुरु तेगबहादुर और गुरु गोविन्द सिंह जी के बच्चों के महान बलिदानों को हमेशा स्मरण रखें .और उनको अपना आदर्श मनाकर देश धर्म की रक्षा के लिए कटिबद्ध हो जाएँ .वर्ना यह सेकुलर और मुस्लिम जिहादी एक दी हिन्दुओं को विलुप्त प्राणी बनाकर मानेंगे .
सकल जगत में खालसा पंथ गाजे ,बढे धर्म हिन्दू सकल भंड भागे .



धर्मप्रदूषण:विधर्मी षडयंत्र

भारत में जितने भी विदेशी विधर्मी हमलावर आये ,वह सब भारत की सम्पदा को लूटने ,और भारत पर हुकूमत करने के लिए आये थे .वह जानते थे कि यदि भारत पर निर्विघ्न रूप से हुकूमत करना है तो ,भारत में ही अपने समर्थकों की जरूरत पड़ेगी .वह यह भी जानते थे कि यदि भारतीय समाज और संसकृति को मिटाकर अपने समर्थको की संख्या बढ़ाना हो ,तो भारत के प्राण उसके इतिहास ,साहित्य और धर्मग्रंथों को नष्ट और भ्रष्ट करना भी जरूरी है .जोकि भारतीय समाज के मुख्य आधार हैं.धर्म के विना भारतीय ,कला ,संगीत ,काव्य ,साहित्य ,चित्रकला ,मूर्तिकला आदि सब निष्प्राण हो जायेंगे .इसीलिए मुसलमान हमलावरों ने पाहिले तो चुन चुन कर प्रसिद्ध विद्यालयों ,पाठशालाओं ,ग्रंथागारों को जलवा दिया .फिर जो बच गए उन ग्रन्थों के उलटे सुलटे अर्थ करवाकर हिन्दुओं को गुमराह करने की चाल चली .और हिन्दू ग्रंथो में इस्लामी तालीम घुसाने का षडयंत्र किया .जैसे अकबर ने अल्लोपनिषद नामकी उपनिषद् बनवाई थी .इसी तरह ईसाई मिशनरी ने एजोर्वेदम नामक नकली वेद बना दिया था जिसके बारे में लिखा जा चूका है .
मुसलमान और ईसाइयों के वेदों ,और अन्य धर्म ग्रंथों के जो अनर्थ किये ,उसकी पोल महर्षि दयानंद ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक "ऋग्वेदभाष्य भूमिका"में खोल दी है . लेकिन हिन्दू धर्म ग्रंथों को प्रदूषित करने का षडयंत्र अंगरेजों के समय में भी चलता रहा .आज यह दायित्व सेकुलर सरकार और सेकुलर नेता निबाह रहे हैं .
यहाँ पर थोडेसे उदहारण दिए जा रहे हैं -

1 -वेदों में मदीना का उल्लेख है
कहावत है कि बिल्ली को सपने में छीछड़े ही दिखते हैं .इसीतरह किसी मौलवी ने वेदों में दिए गए "अदीना "शब्द को "मदीना "पढ़ लिया .और कहा कि वेद में कहा गया है कि ,हम सौ साल तक मदीना में रहें -
"प्रब्रवाम शरदः शतमदीना स्याम शरदः शतम" यजुर्वेद -अध्याय 36 मन्त्र 24
जबकि इसका सही अर्थ है कि हे ईश्वर हम सौ साल तक कभी दीन नहीं रहें ,और किसी के आगे लाचार नहीं रहें
2 -मनुस्मृति में मौलाना
इसी तरह मनुस्मृति के "मौलान "शब्द को "मौलाना "बताकर यह साबित करने की कोशिश की गयी कि मनुस्मृति में लिखा है कि ,हर बात मौलाना से पूछ कर करना चाहिए .मनुस्मृति का श्लोक है -
"मौलान शाश्त्रविद शूरान लब्ध लक्षान कुलोद्गतान "मनुस्मृति -गृहाश्रम प्रकरण श्लोक 29
इसका वास्तविक अर्थ है कि .किसी क्षेत्र के रीतिरिवाज के बारे में जानकारी के लिए वहां के किसी मूल निवासी ,शाश्त्रविद ,कुलीन और अपना लक्ष्य जानने वाले व्यक्ति से प्रश्न करें .न कि किसी मौलाना से पूँछें .
3 -वेद कहता है मुर्गा खाओ मद्य पियो
वेद का एक मन्त्र इस प्रकार है -
"तेनो रासन्ता मुरुगायमद्य यूयं पात सवस्तिभिः सदा "ऋग्वेद -मंडल 7 सूक्त 35 मन्त्र 15
मुसलमानों ने इसका अर्थ किया कि वेद कहता है हे लोगो तुम मुर्गा खाओ और मद्य (शराब )पीकर ख़ुशी मनाओ .जबकि इसका अर्थ है हे ईश्वर आज आप हमारे लिए कीर्ति प्रदान करने वाली विद्या का उपदेश करें ,और हमारी रक्षा करें
4 -वेद में ईसामसीह का उल्लेख
अकसर ईसाई हिन्दुओं को ईसाई बनाने के लिए यह चालाकी करते है ,और कहते हैं कि वेदों में ईसा मसीह के बारे में भविष्यवाणी कि गयी है .और ईसा एक अवतार थे .इसाई इस वेदमंत्र का हवाला देते है -
"ईशावास्यमिदं यत्किंचित जगत्यां जगत "यजुर्वेद -अध्याय 40 मन्त्र 1
ईसाई इसका अर्थ करते है ,कि इस दुनिया में जो कुछ भी है ,वह सब ईसा मसीह कि कृपा से है .और वाही दुनिया का स्वामी है .जबकि सही अर्थ है कि इस जगत में जोभी है उसमे ईश्वर व्याप्त है .
5 -सीताजी गिरजाघर जाती थीं
जब भारत में ईसाई धर्म प्रचारक आये ,तो उन्होंने ईसाई धर्म के प्रचार के लिए कपट का सहारा लिया .और हिन्दुओं जैसे वस्त्र धारण कर लिए .यही नहीं जब यह लोग दक्षिण भारत में गए तो खुद को Priest की जगह आचार्य ( )कहने लगे .और Church को कोयिल यानी मंदिर का नाम रख दिया ,ताकि हिन्दू धोखे में आकार ईसाई बन जाएँ .Church को ग्रीक भाषा में Ekklesia और अरबी में कलीसिया ( )भी कहा जाता है .लेकिन जब यह ईसाई प्रचारक हिंदी भाषी क्षेत्र में गए तो उन्हें चर्च के लिए किसी शब्द की जरूरत पड़ी .इन चालाक लोगों ने "रामचरित मानस की इस चौपाई से "गिरजा घर "शब्द बना लिया .और चर्च के लिए प्रयुक्त करने लगे -
"सर समीप गिरिजागृह सोहा ,बरनि न जाये देखु मनु मोहा "बालकाण्ड -दोहा 228 चौ 4
फिर यह मक्कार पादरी भोले भाले हिन्दुओं से यह कहने लगे की देखो सीताजी भी गिरजाघर जाती थीं ,यानि वह भी ईसाई थीं .इसलिए तुम भी गिरजाघर आकर ईसाई बन जाओ .
6 -पुराणों में अंगरेजी
अधिकाँश पुराण ग्रन्थ प्रमाणिक नहीं हैं क्योंकि महाभारत के समय से लेकर अंगरेजों के समय तक कुछ न कुछ जोड़ा जाता रहा .और उनके श्लोकों की संख्या भी बढ़ती गयी .हालाँकि इन पुराणों के रचयिता व्यास मुनि तो बताया जाता है .लेकिन यह सिद्ध हो चूका है कि व्यास के देहांत के बाद भी उनके शिष्य व्यास के नाम से पुराणों में श्लोक जोड़ते रहे थे .और यह परंपरा अंगरेजों के समय तक चलती रही .इसका एक उदहारण दिया जा रहा है -
"रविवारे च सन्डे ,फाल्गुने चैत्र फरवरी षष्टश्च सिक्सटी ज्ञेया तदुदाहरण मीदृषम "भविष्य पुराण -सर्ग 1 अध्याय 5 श्लोक 37
इस श्लोक से साबित होता है कि ,अंगरेजी शब्द पुराण में बाद में जोड़े गए हैं ,क्योंकि व्यास के समय न तो अंगरेज थे और न अंगरेजी थी और यह पुराण भी किसी ने बाद में बनाया है .अतः हमें पुराणों की जगह वेदों ,उपनिषदों को प्रमाणिक मानना चाहिए .वर्ना हम इन धूर्तों के जल में फस सकते हैं .
7 -पद्मपुराण में धूम्रपान की निंदा
एक समय था जब गावों में हुक्का पीना और रखना इज्जत की बात समझी जाती थी .और यदि कोई अपराध करता था तो उसका हुक्का पानी बंद कर दिया जाता था .इसे सबसे बड़ी सजा माना जाता था .मुग़ल दरबार में और नवाबों की महफिलों में हुक्का रखना शान मणि जाती थी .मुसलमानों के दौर में पान तमाखू का रिवाज शुरू हुआ था .हरेक मुसलमान के घर में पानदान ,पीकदान जरुर होते हैं .जब पोर्चुगीज लोग भारत में आये तो वह अपने साथ टोमेटो ,पोटेटो ,टोबेको लेकर आये .सन 1605 के बाद से धुम्रपान का रिवाज सरे देश में फ़ैल गया .यह देखकर किसी ने धूम्रपान करने वाले ब्राहमण को दान देने वाले को नरक जाने ,गाँव के सूअर बनने की बात लिख दी होगी -
"धूम्रपान रतं विप्रं ददाति यो नरः ,दातारो नरकं यान्ति ब्राह्मणं ग्राम शूकरम "पद्म पुराण 1 :36
यद्यपि इस श्लोक में धुम्रपान की निंदा की गयी है ,परन्तु यह साबित होता है कि यह श्लोक सन 1605 के बाद यानि पोचुगीज के आने के बाद लिखा होगा .यानि पद्म पुराण में काफी बाद में जोड़ा गया है
इस से यह भी साबित होता है कि विधर्मियों ने हिन्दू धर्म ग्रंथों को प्रदूषित किया था .चाहे अर्थ का अनर्थ किया हो ,चाहे ग्रंथों में नए नए श्लोक जोड़ दिए हों
आज भी मुस्लिम मुल्ले और ,ब्लोगर हिन्दू ग्रंथों में मुहम्मद को अवतार साबित करने की कोशिश करते रहते हैं .जैसे जकारिया नायक .इस समय हिन्दी में करीब 200 ब्लॉग है ,जो हिन्दू ग्रथो को प्रदूषित कर रहे हैं .हमें इन से सावधान रहने की जरुरत है.और सभी हिन्दुओं को चाहिए किवह प्रमाणिक हिन्दू ग्रथो का अर्थ सहित गहन अध्यन करते रहें .और विधर्मियों के जाल में नहीं आयें .और न कभी मुहम्मद को अवतार ही मानें
भगवान परशुराम ने कहा है -
"अग्रश्च चतुर्वेदः पृष्ठशचः सशरा धनु .इदं ब्राह्मं इदं क्षात्रं शास्त्रादपी शरादपि ."
मेरे सामने चारों वेद हैं ,और पीठ पर परशु और धनुष वाण है .मैं शत्रु का सामना ब्राह्मण बन कर शास्त्र से ,और क्षत्रिय बनकर अस्त्र शस्त्रसे करूँगा



क्या फतवे संविधान से भी ऊपर हैं?

अक्सर मुस्लिम उलेमा ऐसे फतवे जारी करते रहते हैं ,जो जो मुस्लिम समाज को मध्य युग की तरफ खींचने वाले होते हैं.उलेमा हरेक मुद्दे को मजहबी चश्मे से देखते हैं.इन फतवों का मुस्लिम समाज पर दूरगामी प्रभाव पड़ता है. एक तरफ यह उलेमा मुसलमानों के पिछड़ेपन का रोना रोते रहते हैं.और सरकारों को कोसते रहते हैं .लेकिन यह उलेमा इतनी सी बात नहीं स्वीकार करते किमुसलमानों के पिछड़ेपन के लिए यह खुद जिम्मे दार हैं.
जिस कौम की आधी आबादी को घर में कैद कर दिया जाए वह वह दुन्या के साथ कदम से कदम मिला कर कैसे चल सकती है.
मुसलमानों ने हिन्दुस्तान पर लगभग सात सौ साल हुकूमत की .फिर भी वह पिछड़े ,और गरीब हैं ,तो क्या इसके लिए हिन्दू जिम्मेदार हैं.समाज की उन्नति में पुरुष और महिला दोनों का योगदान जरूरी होता है. औरत सिर्फ बच्चे पैदा करने की मशीन नहीं है .उसे भी समाज में कहीं भी जाने,नौकरी करने का संवैधानिक अधिकार है.ऐसा लगता है कि यह उलेमा मध्य युग में जी रहे है,और इन्होंने अपनी समानांतर सरकार बना रखी है.ऐसे फतवे सिर्फ विवाद पैदा करने और दंगा करवाने के उद्देश्य से जारी किये जाते हैं ताकि समाज कई भागों में बटजाए

इस संदर्भ में एक ताजा उदाहरण दारूल उलूम देवबंद द्वारा जारी फतवे का है। इसमें कहा गया है कि शरियत के मुताबित मुस्लिम महिलाओं को किसी ऐसे संस्थान में काम नहीं करना चाहिए जहां पुरुष और महिलाएं एक साथ काम करते हैं और बिना किसी पर्दे के एक-दूसरे से बात करते हैं। यह फतवा तीन उलेमाओं द्वारा जारी किया गया है। इस फतवे से पता चलता है कि मुस्लिम उलेमा संविधान के मूल्यों को कितना समझते हैं। सबसे पहले तो यह बहस का विषय है कि क्या शरियत पुरुषों और महिलाओं के बीच इस तरह का भेदभाव करती है। बहुत से मुस्लिम उलेमा, विचारक और बुद्धिजीवी इस मत से सहमत नहीं हैं। दूसरे, यदि ऐसा है भी तो देवबंद के उलेमाओं को यह बताने की जरूरत है कि किसी भी पंथ के सिद्धांत को संविधान के सिद्धांतों से ऊपर नहीं माना जा सकता। उदाहरण के तौर पर अनुच्छेद 14 में कानून के समक्ष समानता की गारंटी दी गई है और कहा गया है कि राज्य किसी भी नागरिक के इस अधिकार का हनन नहीं कर सकता। अनुच्छेद 15 के तहत राज्य पंथ, प्रजाति, जाति, लिंग के आधार पर किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं कर सकता। अनुच्छेद 16 में उल्लेख है कि रोजगार के मामले में सभी नागरिकों को अवसर की समानता होगी और किसी भी नागरिक के साथ उसके पंथ, जाति, प्रजाति, लिंग आदि के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। इसी प्रकार अनुच्छेद 19 में नागरिकों को कई तरह के अधिकार दिए गए हैं, जिनमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार, संगठन बनाने का अधिकार, राज्य के किसी भी हिस्से में बसने और किसी भी तरह के व्यवसाय को करने का अधिकार दिया गया है। ये सभी प्रावधान समानता के सिद्धांत पर किए गए हैं, जो किसी लोकतांत्रिक समाज का आधार है। इन प्रावधानों का मकसद संविधान के आधारभूत सिद्धांतों के उल्लंघन से राज्य के हस्तक्षेप को रोकना और नागरिकों के बीच ऐसे भेदभाव को खत्म करना है।
संविधान के अनुच्छेदों में प्रयुक्त शब्दों से कोई भी समझ सकता है कि हमारे पूर्वज किसी भी तरह के लिंग आधारित भेदभाव को रोकने के लिए दृढ़प्रतिज्ञ थे। वे समझते थे कि लैंगिक समानता के बिना किसी भी तरह की समानता संभव नहीं है। इस कारण वे सुनिश्चित करना चाहते थे कि पुरुष और महिला दोनों को ही एकसमान अधिकार मिलें। इसके लिए अनुच्छेद 15 में समानता के संबंध में एक सामान्य अवधारणा की स्थापना की गई है। अनुच्छेद 16 में यह साफ-साफ कहा गया है कि पुरुष और महिला को रोजगार के मामले में एकसमान अधिकार हैं। रोजगार के संबंध में दूसरा महत्वपूर्ण प्रावधान अनुच्छेद 19 , ज में है, जिसमें प्रत्येक नागरिक को अपना व्यवसाय चुनने अथवा करने की स्वतंत्रता दी गई है। हाल में जारी देवबंद फतवा उन सभी प्रावधानों का उल्लंघन करता है जो हमारे संविधान के अध्याय तीन में मौलिक अधिकार के तौर पर लैंगिक समानता को सुनिश्चित करते हैं। वास्तव में, यह असाधारण है कि आज के समय में जबकि लाखों भारतीय युवा बेहतर शिक्षा हासिल करके विभिन्न क्षेत्रों में योग्यता हासिल करके वैश्विक प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं, कुछ पंथिक नेता पीछे ले जाने वाले ऐसे फतवे जारी कर रहे हैं। शिक्षा के क्षेत्र में उन्नति के कारण हमारी अर्थव्यवस्था मजबूत हुई है और महिलाओं को सबल होने के लिए आज से पहले कभी भी ऐसा मौका नहीं मिला। कुछ लोग फतवों में कुछ भी गलत न होने का तर्क देकर इनका बचाव कर रहे हैं कि संविधान में सभी को अपने-अपने पंथ के अनुसार आचरण करने का अधिकार दिया गया है। यह अंशत: ही सही है। अनुच्छेद 25 में प्रत्येक नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अपने पंथ के पालन का अधिकार दिया गया है। अनुच्छेद 26 में सभी पंथिक संप्रदायों को पंथ के संबंध में स्वतंत्र आचरण का अधिकार दिया गया है। लेकिन यह अधिकार असीमित नहीं हैं। अनुच्छेद 25 में कहा गया है कि ये अधिकार लोक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य तथा दूसरे प्रावधानों पर निर्भर हैं। इसका मतलब है कि पंथ संबंधी यह अधिकार संविधान के खंड तीन में दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं कर सकते। हमें जरूरत है कि आत्ममुग्ध उलेमाओं को याद दिलाएं कि उनके फतवे नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं कर सकते।
इन अवधारणाओं की पुष्टि 1952 में द स्टेट आफ बांबे बनाम नरसू अप्पा माली मामले में बांबे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश चांगला और जस्टिस गजेंद्र गडकर के निर्णय में देखा जा सकता है, जिसमें कहा गया कि अनु. 25 में दिए गए अधिकार अंतिम अथवा असीमित नहीं हैं। यह लोक व्यवस्था, नैतिकता, स्वास्थ्य तथा संविधान के खंड तीन में दिए गए मौलिक अधिकारों के प्रावधानों पर निर्भर करता है। यदि कोई पंथिक व्यवहार लोक व्यवस्था, नैतिकता, स्वास्थ्य अथवा सामाजिक कल्याण की नीति को निरुद्ध करता है तो ऐसे पंथिक व्यवहार को सभी लोगों के हितों के संदर्भ में त्याग दिया जाना चाहिए। 1879 में अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि संविधान सर्वोपरि है। यदि धार्मिक विश्वासों को सर्वोच्च स्वीकृति मिलती है तो ऐसे में यह संबंधित देश के कानून से ऊपर हो जाएंगे। हालांकि कानून किसी के धार्मिक विश्वासों में हस्तक्षेप नहीं कर सकते लेकिन वे धार्मिक व्यवहार या आचार में हस्तक्षेप कर सकते हैं। यदि हम पंथिक नेताओं को ऐसे कामों को करने की स्वीकृति देते हैं तो हम अपने संविधान और पंथनिरपेक्ष जीवनशैली को खतरे में डालेंगे। इन सब को देखते हुए देवबंद के उलेमाओं द्वारा जारी फतवा पूरी तरह से असंवैधानिक है, क्योंकि यह संविधान के मूल सिद्धांतों लैंगिक समानता, नागरिक अधिकारों, काम करने और किसी व्यवसाय को चुनने की स्वतंत्रता आदि पर चोट पहुंचाता है।
हमें बार-बार मुस्लिम उलेमाओं को बताने की जरूरत है कि भारत एक इस्लामिक राज्य नहीं है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में अहल-ए-किताब (लोगों की पुस्तक) के अलग-अलग अर्थ हैं। हमारे संदर्भ में यह किताब हमारा संविधान है और केवल उन्हीं को यह नागरिक मानता है जो इसकी आत्मा, इसमें लिखे शब्दों का आदर करते हैं। क्या मुस्लिम उलेमा इस बात को कभी समझ सकेंगे? हमारे लोकतंत्र के व्यापक हित में कानून मंत्रालय के लिए यह एक अच्छा विचार हो सकता है कि वह पंथिक नेताओं को संवैधानिक कानून का एक बेसिक कोर्स कराए।
जरूरत यह है कि ऐसे सभी फतवों पर तुरत कानूनी पाबंदी लगायी जाए ,जो संविधान के विपरीत हो.
बी एन शर्मा-भोपाल.२९ मई २०१०



क्या अल्लाह ने अपनी सत्ता और संपत्ति का बटवारा कर दिया ?

मेरे कल के लेख पर बहुत से कमेंट्स आये हैं .कई लोगों ने मेरे लेख की तारीफ़ भी की है.लेकिन मेरे प्रिय मित्र जीशान जैदी ने मेरे लेख पर जो कमेन्ट दिया था उसमे उनहोंने इस्लाम की दुनिया के एक लेख की आखिरी लाइन पढ़ने की सलाह दी दी थी .जब मैं ने वह लाइन पढी तो मैं हैरान रह गया. वह लाइन यह है "सभी इंसान जमीन के मालिक नहीं हैं ,हदीसों के अनुसार जम्मिन के मालिक मुहम्मद स.अ.व्.आले मुहम्मद हैं.
नऊजू बिल्लाह यह तो सरासर शिर्क है.हमने तो कुरआन में यही पढ़ा है किसिर्फ अकेला अल्लाह ही जमीनों और आसमानों का मालिक है .क्या अब से अल्लाह आसमान का और मुहम्मद जमीनों का मालिक हो गया है .देखिये कुरआन में अल्लाह को आसमान के साथ जमीन का भू मालिक माना गया है
सूरा अल बकरा २:१०७.,पूरब पश्चिम का मालिक सूरा त़ाहां २०:४-८ तक जमीन की हर चीज का मालिक सूरा अल मोमिनून२३:८४ और
सूरा अस साफ्फात ३७:४से ५ तक ,सूरा अज जुमुर ३९:६
मुझे समझ में नहीं आ रही है कि हिदुओं और ईसाइयों पर शिर्क का इल्जाम लगाने वाले मुहम्मद को अल्लाह की जमीन का मालिक बता कर अल्लाह की संपत्ति में हिस्सेदार बता रहे हैं.हो सकता है कि आतंकवाद के कारण अल्लाह ने जमीन मुहम्मद के हवाले कर दी हो .क्योंकि वही अपने लोगों पर काबू कर सकता है.अल्लाह के बस की है नहीं.
ऐसा ही तो इसाई कहते हैं कि क़यामत के दिन जब हिसाब किताब होगा तो इसा मसीह खुदा से चार्ज ले लेंगे.
यहाँ न तो अल्लाह रिटायर्ड हो गए हैं न कियामत ही आने वाली है.फिर अल्ल्लाह को क्या सूझी कि जमीन मुहम्मद को देदी और आसमान अपने पास रख लिया. .इस्लाम के जानकार इसपर अपने कमेन्ट जरूर भेजें..मुझे इंतज़ार रहेगा .अगले पोस्ट का इंतज़ार करें
बी एन शर्मा -भोपाल २८ मई २०१०



जकारिया नायक के कुतर्कों का भंडाफोड़

जकारिया नायक इस्लाम के प्रसिध्ध विद्वान् और प्रचारक हैं.उनके प्रोग्राम अक्सर टी वी पर आते हैं .नायक जब भी अपना कार्यक्रम आयोजित करते हैं ,तो उनके कार्यक्रम में कुछ हिन्दू भी चले जाते हैं .जिन्हें न तो इस्लाम के बारे में पूरा ज्ञान होता है न हिन्दू धर्म का.वे सिर्फ नायक की लच्छेदार बातें सुनने को जाते हैं. नायक बीच बीच में कुरआन की आयतें ,उनके नंबर ,सूरा का हवाला देकर अपनी विद्वत्ता जताता है. ताकि लोग प्रभावित हो जाए.शायद बहुत कम लोगों को पता होगा कि शैतान को भी इस्लाम का पूरा पूरा ज्ञान है.
एक बार जब किसी हिन्दू ने नायक से पूछा कि आप वन्देमातरम का विरोध क्यों करते हैं .तो उसने जो जवाब दिए हम उन पर विस्तार से आगे बताएँगे
लेकिन ताज्जुब की बात यह है कि,मुसलमान जन गणमन का विरोध नहीं करते ,जबकि सब जानते हैं कि यह गाना इंगलैंड के सम्राट की स्तुति में लिखा गया था.और इस्लाम में अल्लाह के अलावा किसी और की स्तुति करना शिर्क है.मुसलमान जन गण मन का विरोध इसलिए नहीं करते ,क्योंकि उन्हें डरहै कि वे देशद्रोही घोषित न हो जाएँ ,और उनकी सुविधाओं में कटौती न हो जाए
वह सिर्फ वन्देमातरम का विरोध इसलिए करते हैं कि वे जानते है कि हिन्दू अपने देश का आदर करते हैं.और उस से प्रेम करते है .
जैसी कि इस्लाम की नीति है कि मुसलमान जानबूझ कर वही काम करें जिस से हिन्दुओं को तकलीफ हो .कुरआन में है कि-
तुज़क्किरू लिल्लाह कसीरा लौ करिहल काफिरून .यानी ऐसे काम करो जिस से काफिरों को संताप हो
नायक ने वन्देमातरम न पढ़ने का कारण बताते हुए कहा कि मुसलमान तौहीद यानी एकेश्वरवाद में विश्वास रखते हैं.और सिर्फ अल्लाह की इबादत करते हैं.अल्लाह के अलावा किसी की स्तुति करना ,पूजा करना ,वन्दना करना ,या किसी को अल्लाह के बराबर मानना या किसी का नाम अल्लाह के शामिल करना शिर्क है .जो अल्लाह कभी माफ़ नहीं करेगा .इसीलिए मुसलमान वन्देमातरम नहीं गाते हैं
मुसलमानों का यह तौहीद इनके कलमा से प्रकट होता है .कलमा मुसलमानों का मूल मन्त्र है .इसमे दो पंक्तियाँ हैं -
ला इलाह इल्लल्लाह -मुहम्मदुर रसूलुल्लाह .

इसमे पाहिले दो शब्द "ला इलाह "का अर्थ है कोई माबूद नहीं है .यानी कोई खुदा नहीं है .यह सरासर कुफ्र है .
दूसरी पंक्ति में अल्लाह के साथ मुहम्मद का नाम शामिल किया गया है .जो शिर्क है
केवल मुसलमान तौहीद को नहीं मानते .यहूदी और ईसाई भी तौहीद को मानते हैं .लेकिन उन्हों ने अपने कलमों में अपने धर्म स्थापकों के नाम नहीं जोड़े .
देखिये यहूदियों का कलमा "शेमा इस्राएल अदोनाय एलोहेनू अदोनाय एहाद "तौरेत -इस्तासिना ६:४
इसी तरह ईसाईयों का कलमा 'क्रेडो देउस नोस्तेर दोमिनुस ऊनुस एस्त"लेटिन मिस्सल पेज २३६
मुसलमान यहाँ तक नहीं रुके शिया लोगों ने एक तीसरी लाइन भी जोड़ ली "अलीयुन वलीउल्लाह
फिर नायक हिन्दुओं को शिर्क करने वाले या मुशरिक क्यों कहता है.
अगर किसी यहूदी या ईसाई पूछा जाए तो वह सारे मुसलमानों को मुशरिक बता देगा क्योंकि यहूदी और ईसाई खुदा के साथ अपने कलमों में मूसा या ईसा का नाम नहीं जोड़ते हैं .कुरआन में भी कलमा इसी रूप में नहीं है .
बी एन शर्मा -भोपाल २७ मई २०१०



हम मुहम्मद को अनपढ़ कैसे मानें ?

मुस्लिम विद्वान् मुहम्मद को उम्मी कहते हैं.और इसका अर्थ अनपढ़,अशिक्षित ,और निरक्षर बताते हैं ऐसा यह लोग उस समय से कह रहे हैं ,जब से इस्लाम अरब से बाहर फ़ैलाने लगा था .उस समय अरब में जादातर यहूदी और ईसाई थे.जो आरोप लगाते थे की कुरआन मुहम्मद ने लिखी है.इसलिए इन लोगों ने यह बात फैलाई की मुहम्मद तो अनपढ़ है.वह कुरआन कैसे लिख सकता है.और कुरआन एक चमत्कारी किताब है जो अल्लाह ने भेजी है .
उम्मी एक हिब्रू संबोधन का शब्द है .यहूदी उस व्यक्ति को उम्मी कहते थे,जो तौरेत नहीं पढ़ सकता था ,या किताब होने पर भी उसे छुपाता था .
देखिये कुरआन में उम्मी किसे कहा गया है-
सूरा -अल बकरा २:७८ और सूरा आले इमरान ३:२० .३:७५
मुहम्मद के पिता के गुजरने के बाद उसे उसके चाचा अबूतालिब ने पाला था .अबूतालिब एक ब्यापारी था .वह अपना तरह तरह का सामान अरब से बाहर सीरिया तक बेचता था .उसका व्यापार दूर दूर तक फैला हुआ था.जब मुहम्मद १० -१२ साल का होगया तो अबूतालिब उसे अपने साथ सफ़र पर ले जाने लगा .और उसे व्यापार में हिसाब किताब करना भी सिखा दिया .इससे मुहम्मद भी एक सफल व्यापारी बन गया .
बाद में मुहम्मद मक्का की एक अमीर महिला व्यापारी के साथ काम करने लगा उस महिला का नाम खदीजा था.खदीजा कई बार मुहम्मद को व्यापार के लिए यमन और सीरिया के शहरों में भेजा .व्यापार में मुहम्मद को काफी नफ़ा हुआ .इससे खदीजा ने मुहम्मद से शादी कर ली.अकेले व्यापार करने में उसे दिक्कत हो रही थी.
शायद उस समय मुहम्मद अनपढ़ रहा होगा .देखिये सूरा -अनकबूत २९:४८
अगर हम कुछ समय के लिए मान भी लें ,की मुहम्मद अनपढ़ था .लेकिन इस बात से कोई भी इनकार नहीं कर सकता किमुहम्मद को गिनती आती थी और वह हिसाब किताब कर सकता था .उस समय गिनती की दशमलव प्रणाली की खोज नही हुई थी अरब में एक अंक के लिए अरबी भाषा के अक्षर का प्रयोग किया जाता था .अरबी में कुल २९ अक्षर हैं. इस तरह एक से लेकर एक हजार तक की संख्या लिखने में अरबी पूरे २९ अक्षर आ जाते हैं. मुहम्मद ने वे पूरे अक्षर जरूर सीखे होंगे .वरना वह हिसाब कैसे करता.
यह सरासर झूठ है कि मुहम्मद निरक्षर था.
बाद में जब वह नबी बन गया ,और कहानियों के अनुसार उसके पास अल्लाह के सन्देश आने लगे तो वह उनको लिख कर जमा करता रहा.इसी तरह २३ साल तक कुरआन जमा होती रही .मुहम्मद लोगों के सामने कुरआन पढ़ कर भी सुनाता था.
सूरा -अल कियामा ७५:१७ और सूरा अल जुमुआ -६२:१

इसके कुछ समय बाद कुरआन के हिसे सवेरे शाम पढ़ कर सुनाने लगा.सूरा -अल फुरकान -२५:५
जब कुरआन के बिखरे हुए हिस्से ,जो चमड़े ,हड्डी ,या झिल्लिओं पर लिखे हुए थे मुहम्मद ने एक जगह जमा करवा दिए.और पढ़ पढ़ कर लोगों को निर्देश देता गया कि कौन सा अंश किसके साथ ,या किसके बाद रखना है.जब पुरी कुरआन संपादित हो चुकी तो उसकी प्रति अपनी पत्नी हफाशा के घर रखवा दी
तब तक मुहम्मद लिखना पढ़ना सीख चुका था .लोगों के पूछने पर मुहम्मद ने कहा कि मुझे खुद अल्लाह ने पढ़ाया है.
सूरा -अल आला -८७:६
इसका एक कारण और भी था.उस समय सारे धर्म ग्रन्थ या तो हिब्रू में थे या ग्रीक में.मुहम्मद वे पढ़ नहीं पता था. इसी लिए यहूदी और ईसाई उम्मी कहते थे.इसी लिए मुहम्मद ने कुरआन अरबी भाषा में बनाई ताकि वह और अरब के लोग पढ़ सकें सूरा -यूसुफ १२:२
जिस तरह तुलसीदास ने रामायण हिन्दी में लिखी थी

इस लिए यह कहना ठीक नहीं है कि मुहम्मद बिलकुल अनपढ़ था
बी एन शर्मा -भोपाल २६ मई २०१०



बवाना के इमाम का तबलीग का नया तरीका.
पिचले दो दिनों से मैं कोई पोस्ट नही लिख सका था. एकतो मेरे शर में बिलाली की समस्या .दूसरे मुझे अगली पोस्ट के लिए अरबी ,उर्दू हिन्दी के साथ हिब्रू और लेटिन भाषा की किताबों से मसाला जमा करना था.मैं चाहता हूँ की मेरे लेखों में प्रमाणिकता हो. इसमे देर हो गयी .
इसी दौरान अचानक शर्मा नामकी महिला ब्लोगर प्रकट हो गयीं.मैं ने उनकी सारी पोस्टें पढ़ लीं.इन शर्मा महोदया ने अपने ब्लॉग में सारे शर्मा ,वारा को जम कर कोसा .और कहा इन लोगोंने उन्हें बरबाद किया है .लेकिन इन शर्मा ने अपने बारे में कम ,और उन लोगून के बारे में काफी विस्तार से लिखा है पाहिले हिन्दू थे और बजरंगदल या शिवसेना से जुड़े थे.
इन सभी नव मुस्लिमों ने बवाना के इमाम बशीर अहमद का आभार प्रकट किया है.जिन्हों ने इनकी खतना कराई .मुसलमान बनाया औ शादी भी कराई. .लेकिन इन शर्मा महोदया ने अभी तक शर्मा नाम लगा रखा है. यह बात अजीब लगी.जब मैं ने उकाकी फोटो इनलार्ज कर के देखी तो समझ में आ गया की लोग मुसलमान क्यों बन रहे हैं .शायद इन शर्मा महोदया की फोटो इमाम साहेब के इशारे पर डाली गयी है.
मैं ने पिछली पोस्ट पार जन्नत के बारे में लिखा था.अब हर के बारे में इमाम साहेब ने बता दिया है.फोटो में कुछ कमी है ,अगर हूर पूरी दिखा दी जाती तो सारा हरियाणा मुसलमान हो जाता.इमाम साहेब की यह तरकीब कमाल की है.उन्हों ने फोटो जरूर गौर से देखी होगी

पता नही है की इमाम ने इन शर्मा महोदया को शर्मा वर्मा से बचाया है या नहीं .
इसके बारे में उझे गुलिस्ताँ की एक कहानी याद आरही है .एक बार एक इमाम ने एक बकरी के बच्चे को भेड़िये से बचाया और घर ले गया.बकरी का बच्चा इमाम को और खुदा का शुक्र करने लगा .की इसने मेरी जान बचाई.तभी इमाम की औरत बोली कल मेहमान आने वाले हैं .तुन इस बकरी के बच्चे को हलाल कर लो.ताकि मेहमानों की दावत हो सके .बकरी का बच्चा बोला ,खुदा मुझे वापस भेड़िये के पास भेज दे .हो सकता है मैं बच जाऊं ,लेकिन इस इमाम से मेरी जान बचना ना मुमकिन है.

इन शर्मा महोदया को पता ही होगा की देश में जनगणना हो रही है .इमाम साहेब मुसलमानों की तादाद जरूर बढायेंगे .
इमाम साहेब इसी हूर का लालच देकर लोगों को जन्नत की तरफ बुला रहे हैं और कुरआन के इस हुक्म का पालन कर रहे है
वद्खुलीइबादी ,फद्खुली जन्नती
हम इन शर्मा महोदया के ब्लॉग का पता दे रहे हैं .आप खुद फोटो ध्यान से देखिये और समझिये
http://iamfauzia.blogspot.com/



क्या कुरआन सचमुच ईश्वरीय ग्रन्थ है ?

डाक्टर ज़कारिया नायक जैसे इस्लामी विद्वान् कुरआन को अल्लाह के द्वारा प्रणीत ग्रन्थ बताते हैं .और दावा करते हैं किकुरान में लिखा एक एक शब्द अल्लाह ने मुहम्मद पर नाजिल किया है.इसलिए इसमे किसी भी प्रकार की गलती नहीं है.जबकि अन्य धर्म ग्रंथोंमे गलतिओं की भरमार है.क्योंकि वे मनुष्यों द्वारा रचित हैं.अल्लाह की किताब होने के कारण कुरआन त्रुटी रहित और प्रमाणिक है
मैं आपको कुरआन से कुछ उदाहरण दे रहा हूं ,आप स्वयं निर्णय करिए कि ज़कारिया नायक के दावे में कितनी सच्चाई है.
१--जमीन की सृष्टी के बारे में

कुरआन में कहा गया है कि अल्लाह ने जमीन को दो दिनों में बनाया था
सूरा-हां मीम सजदा ४१ आयत ९
फिर दूसरी जगह कहा गया है कि जमीन को छे दिनों मेंबनाया था
सूरा यूनुस १० आयत ३ .इनमे कौन सी बात सच है ?
२ -- फिराउन के बारे में

कुरआन में कहा गया है कि मिस्र का राजा फिराउन अपने अपराधिओं को क्रूस पर लटका कर मौत की सजा देता था .
सूरा अल आराफ ७ आयात १२४
जबकि क्रूस पर लटकाने की प्रथा रोमन लोगों ने शुरू की थी.फिराउन का काल रोमनों से तीन हजार पहिलेका है.
३-- सामरी के बारे में
कुरआन में बताया गया है कि, एक सामरी जाती के व्यक्ति ने इस्रायली लोगों को बहकाया था ,और उन लोगों को सोने के बछड़े की पूजा करने के लिए प्रेरित किया था
सूरा -ताहां २० आयत ९५
जबकि उस समय सामरी लोगों का कोई अस्तित्व ही नहीं था.यह लोग काफी बरसों बाद यहूदिओं से अलग हुए थे.
४-- उजेर या एजरा के बारे में
कुरआन में उजैर के बारे में कहा गया है कि यहूदी उजैर को खुदा का बेटा मानते थे.और उसकी इबादत करते थे
सूरा तौबा -९ आयत ३०
लेकिन उजैर यहूदी धर्म में दीक्षित नहीं था.और न ही उजैर यहूदी धर्म का अनुयायी था.इसलिए उसे कहता का बेटा मानने का सवाल ही नहीं है ५ --सिकंदर के बारे में
५-- कुरआन में सिकंदर ,जिसे अरबी में जुलकरनैन भी कहा जाता,बताया गया है कि वह अल्लाह का बन्दा था .उसे अल्लाह ने सुख समृद्धी और लम्बी आयु का बरदान दिया था
सूरा कहफ़ -१८ आयत ८३.८४,९८
लेकिन सिकंदर ३५६ ई पू ३५६ में ३३ साल की आयु में भारत में बियास नदी के किनारे बीमारी से मारा गया था
६-- ईसाइयों के बारे में
कुरआन में कहा गया है कि,ईसाई तीन तीन खुदाओं को मानते हैं. खुदा ,मरियम और ईसा मसीह को.
सूरा मायदा -५ आयत ११६,और आयत ७३ से ७५
जबकि ईसाई मरियम को खुदा नहीं मानते .वे ट्रिनिटी में विश्वास रखते है इसके अनुसार ईसाई पिता परमेश्वर ,पुत्र ईसा और पवित्र आत्मा को मानते है .वे इन तीनों को ही एक ही ईश्वर की तीन विभूति मानते है .मरयम को वह संत मानते हैं .यही मुसलमान भी मानते हैं.
७-- मरियम के बारे में
कुरआन में लिखा है कि इसा की माँ मरयम हारून की बहिन थी हारून का बाप इमरान था उसके दो लड़कों का नाम मूसा और हारून था.
सूरा मरियम -१९ आयत २८ ,सूरा -आले इमरान ३ -आयत ३३,३६
लेकिन मरयम और हारून व् मूसा के काल में सैकड़ों साल का अंतर है.हारून और मूसा मरियम से काफी वर्षों पहिले पैदा हुए थे.

इस से सिद्ध होता है कि कुरआन में इतिहास से सम्बंधित कई गलतियाँ हैं अगर अल्लाह अन्तर्यामी और सर्व ज्ञाता होता तो वह ऎसी भूलें नहीं करता.
क्या जकरया नायक अब ही यह दावा करेंगे कि कुरआन में कोई गलती नहीं है ,और यह अल्लाह की किताब है
अपनी अगली पोस्ट में जकारिया नायक के दावोंका भण्डाफोड़ करूंगा .कृपया प्रतीक्षा करें



आपको मालूम है कि जन्नत की हकीकत क्या है ?

विश्व के लगभग सभी धर्मों में स्वर्ग और नर्कके बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है.इन में सभी धर्मों की बातों में काफी समानता पायी जाती है.
लेकिन स्वर्ग या जन्नत के बारे में जो बातें लिखी गयी हैं वह सिर्फ पुरुषों को रिझाने वाली बातें लिखी गयी हैं.जैसे मरने के बाद जन्नत में खूबसूरत जवान हूरें मिलेंगी ,जो कभी बूढ़ी नहीं होंगी .उनकी उम्र हमेशा १४-१५ साल की रहेगी.जन्नत वाले किसी भी हूर से शारीरिक सम्बन्ध बना सकेंगे.कुरआन में एक और ख़ास बात बतायी गयी है कि जन्नत में हूरों के अलावा सुन्दर लडके भी होंगे ,जिन्हें गिलमा कहा गया है .
शायद ऐसा इसलिए कहा गया होगा कि अरब और ईरान में समलैंगिक सेक्स आम बात है. आज भी पाकिस्तान में पुरुष वेश्यावृत्ति होती है .
इसलिए अक्सर जन्नत के मजे लूटने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं.लोगों ने जन्नत के लालच में दुनिया को जहन्नुम बना रखा है .इस जन्नत के लालच और जहन्नुम का दर दिखा कर सभी धर्म गुरुओं की दुकानें चल रही हैं .भोले भाले लोग जन्नत के लालच में मरान्ने मारने को तैयार हो जाते हैं ,यहाँ तक खुद आत्मघाती बम भी बन जाते हैं.
पाहिले शुरुआती दौर में तो मुसलमान हमलावर लोगों को तलवार के जोर पर मुसलमान बनाते थे.लेकिन जब खुद मुसलाम्मानों में आपस में युद्ध होने लगे तो मुआसलामानों के एक गिरोह इस्माइली लोगों ने नया रास्ता अख्तियार किया .जिस से बिना खून खराबा के आसानी से आसपास के लोगोंको मुसलमान बनाता जा सके.
नाजिरी इस्मायीलिओं के मुजाहिद और धर्म गुरु "हसन बिन सब्बाह "सन-१०९०--११२४ ने जब मिस्र में अपनी धार्मिक शिक्षा पुरीकर चकी तो वह सन १०८१ में इरान के इस्फ़हान शहर चला गया .और इरान के कजवीन प्रान्त में प्रचार करने लगा.वहां एक किला था जिसे अलामुंत कहा जाता है.यह किला तेहरान से १०० कि मी दूर,केस्पियन सागर के पास है .उस समय किले का मालिक सुलतान मालिक शाह था.उनदिनों चारों तरफ युद्ध होते रहते थे.कभी सल्जूकी कभी फातमी आपस में लड़ते थे.इसलिए सुलतान ने किले की रक्षा के लिए अलवीखानदान के एक व्यक्ती कमरुद्दीन खुराशाह को नियुक्त कर दिया था.उनदिन किला खाली पडा था..हसन बिन सब्बाह ने किला तीन हजार दीनार में खरीद लिया.
हसन को वह किला उपयोगी लगा ,क्यों कि किला सीरिया और तेहरान के मार्ग पर था .जिसपर काफिलों से व्यापार होता था.
किला एक सपाट फिसलन वाली पहाडी पर है .किले की ऊंचाई ८४० मीटर है .लेकिन वहां पानी के सोते हैं.किले की लम्बाई ४०० मीटर और चौडाई ३० मीटर है..इसके बाब हसन ने अपने लोगों और कुछ गाँव के लोगों के साथ मिलकर काफिले वालों से टेक्स लेना शुरू करदिया. इससे हसन को काफी दौलत मिली.उसके बाद हसन ने किले में तहखाने और सुरंगें भी बनवा लीं.जब किला हराभरा हो गया तो ,हसन ने किले में एक नकली जन्नत भी बनाली.जैसा कुरआन में कहा गया है,हसन आसपास के गाँव से अपने आदमियों द्वारा सुन्दर ,और कुंवारी जवान लडकियां उठावा लेताथा. और लड़किओं को अपनी जन्नत के तहखानों में कैद कर लेता था.हसन ने इस नकली जन्नत में एक नहर भी बनवाई थी ,जिसमे हमेशा शराब बहती रहती थी.किले वह सब सामान थे जो कुरआनमें जन्नत के बारे में लिखे हैं.
फिरजब हसन के लोग आसपास के गाँव में धर्म प्रचार करने जाते तो लोगों को विश्वास में लेकर उन्हें हशीस पिलाकर बेहोश कर देते थे.और जब लोग बेहोश हो जाते तो उनको उठाकर किले में ले जाते थे .उनसे कहते कि अल्लाह तुम से खुश है ,अब तुम जन्नत में रहो.लोग कुछ दिनों तक यह नादान लोग खूब अय्याशी करते और समझते थे कि वे जन्नत में हैं.फिर कुछ दिनों मौजा मस्ती करवाने के बाद लोगों दोबारा हशीश पिलाकर वापिस गाँव छोड़ दिया जाता .एक बार जन्नत का चस्का लग जाने के बाद लोग फिर से जन्नत की इच्छा करने लगते तो ,उनसे कहा जाता कि अगर फिर से जन्नत में जाना चाहते हो तो हमारा हुक्म मानो .लोग कुछ भी करने को तैयार हो जाते थे.ऐसे लोगों को हसिसीन कहा जाता है .मार्को पोलो ने इसका अपने विवरणों में उल्लेख किया है आज भी लोग जन्नत के लालच में निर्दोषों की हत्याएं कर रहे हैं.
यह जन्नत बहुत समय तक बनी रही.जब हलाकू खान ने १५ दिसंबर १२५६ को इस किले पर हमला किया तो किले के सूबे दार ने बिना युद्ध के किला हलाकू के हवाले कर दिया.जब हलाकू किले के अन्दर गया तो देखा वहां सिर्फ अधनंगी औरतें ही थी.हलाकू ने उन लडाकिन से पूछा तुम कौन हो ,तो वह वह बोलीं "अना मलाकुन"यानी हम हूरें हैं.
यह किला आज भी सीरिया और ईरान की सीमा के पास है .सन २००४ के भूकंप में किले को थोडासा नुकसान हो गया .लेकिन आज बी लोग इस किले को देखने जाते हैं .और जन्नत की हकीकत समाज जाते हैं कि जैसे यह जन्नत झूठी है वैसे ही कुरआन में बतायी गयी जन्नत भी झूठ होगी
यह लेख पाकिस्तान से प्रकाशित पुस्तक "इस्माईली मुशाहीर "के आधार पर लिखा गया है.प्रकाशक अब्बासी लीथो आर्ट .लयाकत रोड -कराची



देश फिर से जातिओं के आधार पर बटेगा
वर्त्तमान जाती के आधार पर की जा रही जनगणना का उद्देश्य पिछड़ी जातिओं का कल्याण करना नहीं ,बल्कि अपना राजनीतिक आधार बनाना है.और अलग अलग जाती को अपना वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करना है.यह सच है कि जाती व्यवस्था देश के विकास में सब से बड़ी बाधा है. क्योंकि इस व्यवस्था में उच्च जातिओं या सवर्णों के हाथों में सत्ता और समृद्धी केन्द्रित रहती है .इसलिए इन लोगों ने पिछड़े ,निर्धन और निम्न जातिओंकेलोगों के शोषण में कोई कसार नहीं रखी है.
इसको दयां में रख कर तत्कालीन विचारकों जैसे अम्बेडकर ,पटेल ,और लोहिया ने महसूस किया था कि यदि देशकी अखण्डता को बनाये रखना होगा तो तो देश में एक ऎसी व्यवस्था का निर्माण करना होगा जिसमे धीमे धीमे ऊंची जातिओं का वर्चस्व समाप्त हो जाए,और सभी जातिओं को सामान स्तर पर कडा कर दिया जाए .जिससे ऊंच नीच का भेदभाव मिट याये.
होना तो यह चाहिए कि संविधान में संशोधन करके देश के सभी व्यक्तिओं के नाम के आगे जाती सूचक उपनाम लगाने को प्रतिबंधित कर दिया जाता .और जो भी अपने नाम के आगे जाती सूचक शब्द लगाता उसे दण्डित किया जाता.जैसा चीन ,जापान और कोरिया में है.इससे सबको बिना भेदभाव के समान अवसर मिलाने के मौके मिलते .
जातीय गणना के विरुद्घ सबसे बडा़ तर्क यह है कि इससे जातिवाद को वैधता मिलेगी और अंतत: बढा़वा। जाति एक सच्चाई है, किंतु भारतीय संविधान और समाज का लक्ष्य वर्णहीन, वर्गहीन समाज का निर्माण है। इसीलिए 1951 की जनगणना में लोगों के उपनाम तक नहीं लिखे गये थे। अस्पृश्यता को कानूनी अपराध बनाया गया। अन्तर्जातीय विवाह को वैधता प्रदान करने के लिए हिन्दू विवाह सत्यापन अधिनियम, 1946 बनाया गया जिसके तहत अनुलोम और प्रतिलोम दोनों विवाह मान्य हो गये। अनुलोम विवाह में उच्च जाति का वर और निचली जाति की कन्या होती थी जो मान्य था, परंतु प्रतिलोम में इसका उल्टा था जो न केवल अमान्य था, बल्कि इसके लिए दण्ड का भी प्रावधान था। यानी जाति को समाप्त करने के लिए हमारे नेताओं ने कई कानून बनाये। दुर्भाग्य से उन कानूनों का पालन तो सरकार करा नहीं पा रही है जिसका परिणाम है खाप पंचायतों के तुगलकी आदेश और निरुपमा पाठक की हत्या। निरुपमा का विवाह यदि होता तो वह पारम्परिक सोच के अनुसार प्रतिलोम माना जाता। इसी सोच से उसके माता-पिता नहीं निकल पाये थे, हालॉकि निरुपमा निकल चुकी थी। यानी आज की पीढ़ी कहीं ज्यादा प्रगतिशील और समझदार है परंतु पुरानी पीढी़ जाति के बंधन को और मजबूत करना चाहती है।जातीय गणना में कई व्यावहारिक दिक्कतें हैं। 1931 के बाद जनगणना में जाति का जिक्र भी व्यवहारिक कारणों से ही बंद किया गया था। तब कई मामलों में यह पाया गया था कि लोग जिस जाति के होते थे अपने को उससे ऊंची जाति का बता देते थे। यही खतरा एक दूसरी तरह से आज भी दिखाई दे रहा है। चूंकि आज पूरी राजनीति जातीय वोट बैंक पर आधारित है, इसलिए बहुत सम्भव है कि अपनी-अपनी जातियों के बारे में संख्या बढ़ा चढ़ा कर पेश की जाएगी। 1881 की जनगणना में कुल 1885 अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की पहचान की गयी थी। इसके बावजूद 2001 की जनगणना में इन जातियों की संख्या 18748 से अधिक हो गयी। इनमें से कई के नाम, उपनाम गैर-दलित, आदिवासी जातियों के थे। 1931 के बाद पिछले 70 वर्ष में कई जातियों के नाम बदल गये हैं, कई नयी जातियां सामने आ गयी हैं, कई जातियां दूसरों से मिल गयी हैं या सामाजिक वरीयता में ऊपर-नीचे हो गयी हैं। साथ ही विभिन्न राज्यों में पिछड़े वर्गों की सूचियां भी भिन्न-भिन्न हैं। सबसे बड़ा खतरा जाति आधारित जनगणना को लेकर नहीं है, खतरा यह है कि इससे मिलें आंकड़ों को बाद में राजनीति के हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। बल्कि किया ही जाएगा। यह भी हो सकता है कि कुछ जातियों को अगर ये आंकडे अगर उनकी उम्मीदों पर खरे उतरते नहीं दिखाई दिए तो वे इसे मानने से ही इनकार कर सकती हैं। ऐसे में जनगणना एक बेवजह राजनैतिक विवाद का कारण बन जाएगी। जबकि जनगणना इसके लिए होती नहीं है।
आप सब जानते हैं कि सोनिया गांधी कट्टर कैथोलिक ईसाई है.उसके मंत्री मंडल और सचिवों में ईसाईयों की बड़ी संख्या है.ईसाई हमेशा अपना प्रचार करने के लिय ऐसा क्षेत्र चुनते हैं जो आर्थिक रूप से निर्धन और अशिक्षित हो .जहां धर्म परवर्तन आसानी से हो सके.
वैसे ईसाइयों ने पाहिले से ही भारत को कई धर्म क्षेत्रों में बाँट रखा है.इनके ऊपर एक आर्कबिशप होता जो ,पादरिओं के माध्यम से उस क्षेत्र पर निगरानी रखता है.जहां भी अति पिछड़े ,गरीब ,और वंचित लोग होते हैं वहीं मिशनरी के लोग अपना काम करने लगते है.हमें पता तभी होता है जब गाँव के गाँव ईसाई बन चुके होते हैं. जैसा नागालैंड ,और पूर्वोत्तर भारत में हुआ है .
जब इस जनगणना की रिपोर्ट आयेगी तो ईसाइयों का काम और आसान हो जाएगा.कि उन्हें पाहिले कहाँ जाना है. ईसाईयों के पास धन की कोई कमी नहीं है.उन्हें विदेशों से दान के रूप में करोड़ों डालर प्रति वर्ष मिलते हैं.फी यहाँ की सरकार भी उनके पक्ष में है .
सय्याँ भये कोतवाल तो डर किसका



देवबंद के मौलाना अदनान मुफ्ती अपने फतवे से मुकर गया !
एशिया का सबसे महत्वपूर्ण इस्लामी अदारा देवबंद दारुल उलूम अपने फतवे से मुकर गया .,और कहा की उसने सिर्फ राय दी थी फतवा नहीं .
दारुल उलूम भी औरतों के मर्दो के संग नौकरी करने और उनकी कमाई को हराम करार देने पर दिए अपने फतवे से मुकर गया है। उर्दू अखबारों में देवबंद के मौलाना अदनान मुफ्ती ने कहा है कि इस बारे में एक शख्स के सवाल पूछने पर शरई ऐतबार से सिर्फ राय दी गई थी। कोई फतवा जारी नहीं किया गया था।
अखबार व्यंगात्मक लहजे में कहते हैं सुझाव था या फतवा यह तो बहस का मुद्दा है। लेकिन कुछ मुफ्तियों के दूरअंदेशी का ख्याल नहीं रखने से एक बार फिर इस्लाम और मुसलमानों को बेवहज की किरकिरी ङोलनी पड़ रही है। गैर उर्दू मीडिया के लिए तो इस्लाम, आतंकवाद, तलाक और बुर्का रीडरशिप तथा टीआरपी बढ़ाने का बेहतर जरिया बन गया है।
चिंतजनक यह है कि ऐसे गंभीर विषयों पर वे लोग भी चर्चा और बहस में भाग ले रहे हैं जिन्हें कुरआन, हदीस और इस्लाम की गहराइयों का रत्ती बराबर अहसास नहीं। ‘सहाफत’, ‘क्या देवबंद सो रहा है’ में कहता है- फतवा कोई खुदाई हुक्म नहीं है। यह आलिम या आलिमों के किसी समूह का किसी मसले पर इस्लाम की रोशनी में दी गई राय मात्र है। इसे माना भी जा सकता है, नहीं भी।
एक टीवी चैनल की महिला एंकर द्वारा फतवे को दकियानूसी करार देने पर कड़ी निंदा की गई है। ‘जदीद खबर’, ‘दारुल उलूम का फतवा’ में कहता है- कोई शक नहीं कि पर्दा मुस्लिम औरतों के लिए मजहबी ऐतबार से खास है। लेकिन वक्त और माहौल के मुताबिक इस पर कैसे अमल किया जाए, यह विचार करना बेहद जरूरी हो गया है।
अखबारों को लगता है अधिकांश आलिम वक्त के लिहाज से नहीं चल रहे। फतवा देते समय इसका कतई ख्याल नहीं रखा जा रहा कि यह किस संदर्भ और किस दौर के लिहाज से है। इसका पालन संभव है भी या नहीं। वैसे भी हिन्दुस्तान इस्लामी मुल्क नहीं है। यहां शरिया कानून नहीं चलता। ऐसे मुल्कों में हमारा व्यवहार कैसा हो, कुरआन में इस बारे में विशेष हिदायतें दी हुई हैं।
‘इंकलाब’, ‘फतवा और हम’ में कहता है- आलिमों को वैसी एकजुटता पर्दे को लेकर भी दिखानी चाहिए, जैसी वह फोटो खिंचवाने के मसले पर दिखा चुके हैं। इस्लाम में तस्वीर बनाना और बनवाने पर पाबंदी है, लेकिन वक्त की मांग को देखते हुए आलिमों ने आपसी समझ बनाकर इसमें तरमीम की है। मौजूदा दौर में पास्टपोर्ट पर फोटो चस्पा किए बगैर कोई हज तक नहीं कर सकता।
अखबार कहते हैं मुस्लिम जब शिक्षा, रोजगार, बेहतर जिंदगी और मुल्क के विकास में योगदान के लिए कोशिश कर रहे हैं तो इस्लामी अदारे औरतों की कमाई और उनके मर्दो के शाना-बशाना काम करने पर सवाल खड़ा कर उनका मनोबल तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं।‘मुंसिफ’ में लखनऊ की फैशन डिजाइनर आसमा हुसैन का बयान है कि उन्होंने अगर इस फतवे पर अमल किया तो उनके कारोबार से जुड़े कई मर्द फाकाकशी का शिकार हो जाएंगे।
एक अखबार तीखे लहजे में लिखता है- उनकी बातों पर अमल किया गया तो तमाम मुस्लिम रेहड़ी लगाते और रिक्शा चलाते नजर आएंगे। एक अन्य अखबार कहता है- आलिमों की तरफ से ऐसे ही फतवे आते रहे तो हमारी तरक्की में कोई और नहीं हम खुद रोड़ा बन जाएंगे। लखनऊ के एक अखबार में चिट्ठी छपी है- अल्लाह बचाए फसादी मुल्लाओं से।
एक अखबार लिखता है-सऊदी एयरलाइंस में तो लड़कियां काउंटर से लेकर हवाई जहाज तक की जिम्मेदारियां संभाल रही हैं। कुवैत, शाम, मिस्र, ईरान, इराक, पाकिस्तान, बांग्लादेश की पार्लियामेंट में औरतें कानून बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। सऊदी अरब के मंत्रिमंडल में भी एक महिला को शामिल किया गया है। इस्लामी मुल्कों में भी महिलाएं लगभग तमाम क्षेत्रों में बेहतर कर रही हैं। एक अखबार अपने संपादकीय में कहता है वह अपने यहां हर रोज एक सफल मुस्लिम औरत की तस्वीर इसलिए शाया करता है ताकि आम मुस्लिम लड़कियां इससे प्रेरणा ले सकें।
पैगंबर हजरत मोहम्मद के जमाने में भी औरतें अहम किरदार निभाया करती थीं। पैगंबर मोहम्मद के जमाने में होने वाली जंगों में भी महिलाएं आगे-आगे रहती थीं। मैदान-ए-कर्बला इसकी बेहतर मिसाल है। पैगंबर साहब की पहली पत्नी मोहतरमा खतीजा अपने जमाने की कामयाब व्यापारी थीं। एक अखबार में वसीम संजर की रिपोर्ट में मौलाना शोएब कोटी, मौलाना जहीर अब्बासी आदि के हवाले से दारुल उलूम के ताजे फतवे को दरगुजर करने की वकालत की गई है। अखबारों की राय में तो इस पर चर्चा करना ही बेमानी है।
इस से उन कट्टर मुसलमानों को सबक लेना चाहिए जो किसी भी मौलवी या अदारे के फतवे को खुदा का फरमान मानकर आंख बंद कर उसपर अमल करने लगते हैं ,और दूसरों पर फतवा मानने के लिए तरह तरह का दवाब डालते हैं.और फतवे की आड़ लेकर शिक्षित मुस्लिम लड़कियों पर पाबंदियां लगाते हैं.जबकि खुद फतवा देनें वालों को पता होता है कि शायद ही कोई पढ़ा लखा मुसलमान इन फतवों पर अमल करेगा .इस तरह से फतवे देकर बेकार सनसनी फैलाने से कोई फ़ायदा नही होगा.



शाहरुख खान के अंडर वर्ल्ड से सम्बन्ध ?
अक्सर फिल्म उद्योग से सम्बंधित लोगों के अंडर वर्ल्ड से सम्बंधित होने की खबरें आती रहती है .लोग भी सोचते होंगे कि फिल्मों में इतना पैसा कहाँ से आताही,और इतना पैसा लगाता है.कई बार कुछ लोगों के नाम भी सामने आये ,मगर मामला दबा दिया गया.सभी जानते है कि यह रुपया दुबई से उसी स्रोत से दिया जाता है जिस से आतंकवादिओं को दिया जाता.फिल्मों की कमाई से आतंकवादिओं को हफ्ता दिया जाता है
यह जितने भी खान हैं सबके सब दुबई जरूर जाते हैं जहां इनके आका हैं.
यह खान कोई न कोई ऐसा विवाद पैदा करते हैं जिस से पुलिस का ध्यान हट जाए और आतकवादी आराम से अपनी कार्यवाही कर सकें.
जिस समय अपनी फिल्म माई नेम इज खान को चलवाने के बहाने पुलिस का ध्यान सुरक्षा पर से हटा रहा था उसी समय पूना में इसके दोस्त विस्फोट कर रहे थे.वी यह सारे खान किसी न किसी अपराध में पकडे जा चुके हैं.और इनपर केस भी चल रहे हैं.
लेकिन हमारी सेकुलर मुस्लिम परस्त सरकार किसी बड़ी वारदात का इंतज़ार कर रही है.तब तक हजारों निर्दोष भारतीयों की जानें जा चुकी होंगी कुछ दिन पहले अमेरिका के नेवार्क एअरपोर्ट पर बॉलिवुड सुपर स्टार शाहरुख खान को रोका गया था और उनसे पूछताछ की गई थी। इस बात पर भारत में खासा हंगामा हुआ था और भारत सरकार ने भी इसे गंभीरता से लिया था। कुछ केंद्रीय मंत्रियों ने तो यहां तक कह डाला था कि यह राष्ट्रीय अपमान है। शाहरुख ने कहा था कि मुस्लिम होने की वजह से उनसे पूछताछ की गई। बताया जाता है कि जिन लोगों के लिए शाहरुख शो करने गए थे, उनमें से कुछ पर अंडरवर्ल्ड से संबंध होने का शक है। वे अमेरिकी खुफिया एजंसियों के निशाने पर हैं। फरहात हुसैन और अल्ताफ हुसैन नाम के दो भाइयों ने ये शो ऑर्गनइज किए थे। इनके अलावा कुछ लोकल प्रमोटर्स भी शामिल हैं। इन प्रमोटर्स में से कुछ अमेरिकी ही नहीं, ब्रिटिश और भारतीय खुफिया एजंसियों के भी निशाने पर हैं। फरहत हुसैन लंदन के एक बिजनसमैन हैं, जो खुद को दुनिया का नंबर एक बॉलिवुड शो प्रमोटर बताते हैं। उनके भाई अल्ताफ शिकागो में रहते हैं और यहां उनका काफी बड़ा बिजनस है। इनके अलावा विजय तनेजा नामक शख्स भी बॉलिवुड शो करवाता रहा था। तनेजा को पिछले साल एक फ्रॉड में दोषी पाया गया और उसे 7 साल की सजा हुई। उसके बाद से बॉलिवुड शो कराने का पूरा बिजनस हुसैन भाइयों के हाथ में है। गड़बड़ी की वजह? - शाहरुख के अमेरिकी शो में मेन प्रमोटर हैं अल्ताफ और फरहत हुसैन। - अल्ताफ का नाम पाकिस्तान के एक नेता से मिलता है। इससे कन्फ्यूजन हुआ। - अमेरिकी शो के कुछ प्रमोटर ऐसे हैं, जिन पर भारत, अमेरिका और ब्रिटेन की सरकारों को शक है। - हालांकि शाहरुख का नाम इनमें शामिल नहीं है, लेकिन उनके लोकल कॉन्टैक्टों की वजह से कन्फ्यूजन हुआ। - हालत और बिगड़ गई, जब शाहरुख का सामान पहुंचने में देरी हुई।



राष्ट्रीय स्वाभिमान का अपमान
अभी तक कांग्रेस के नेता हिन्दुओं ,हिन्दू नेताओं और स्न्घतनों पर निराधार आरोप लगा कर उन्हें किसी न किसी तरह से अपमानित करते आये हैं .चाहे वह आसाराम बापू ,या अडवानी ,या प्रवीन तोगडिया या नरेंद्र मोदी.जब यह कांग्रेसी हुन्दुओं के खिलाफ भोंकते हैं ,तो उनके साथ कम्यूनिस्ट और समाजवादी भी भोंकने लगते हैं.जैसी कि कुत्तों की आदत होती है .
इनमे दिग्विजय सिंह एक ऐसा व्यक्ती है हिन्दुओं का कट्टर शत्रु है .जिस दिन से उसकी मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री की कुर्सी चली गई वह एक तरह से पागल सा हो गया है.तब से उसके निशाने पर संघ ,बी जे पी और अन्य सभी हिन्दू संगटन हैं.और वह इन हिन्दू संघटनों को आतंकवादी बता कर मुसलामानों की सहानुभूति हासिल करके उनके वोट बटोरना चाहता है .
मध्यप्रदेश का हरेक व्यक्ति जानता है कि दिग्विजय सिंह के सिम्मी और आतंकवादिओं से सम्बन्ध हैं.
मैंने अपने पिचले लेखों में इसके बारे में प्रमाण सहित विस्तार से लिखा है
लेकिन बड़े शर्म की बात है कि प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह जैसा व्यक्ती सोनिया के तुकडे खाकर अपनी बुद्धी भ्रष्ट कर रहा है वह भूल गया कि कान्ग्रेसिओं ने सिखों के साथ क्या किया था .अब मनमोहन भी दिग्विजय की भाषा बोलने लगा है उसने उदयपुर में जो कहा वह हिन्दुओं ,और देश भक्तों के स्वाभिमान का अपमान सरासर अपमान है
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा अयोध्या के रामजन्म भूमि मंदिर को बाबरी ढांचा कहना देश के 100 करोड नागरिकों का अपमान है। गुलामी की निशानी बने ढांचे को ढहा कर नागरिकों ने अने शौर्य का परिचय दिया था। भारतीय जनता महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष किरण माहेश्वरी कहा कि मनमोहन सिंह दुर्बलतम प्रधानमंत्री तो है ही, उन्होंने राष्ट्रीय स्वाभिमान से भी समझौता किया है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पुष्टि के बाद भी आतंकवादी अफजल को मृत्यु दण्ड क्यों नहीं दिया जा रहा है। लाल कृष्ण आडवाणी ने गृहमंत्री के रूप में आतंकवाद पर प्रभावी लगाम लगाई थी। पाकिस्तानी घुसपैठ समाप्त की थी। बांगलादेशियों के अवैध प्रवेश पर अंकुश लगाया था। किरण ने कहा कि मनमोहन सिंह ने इंग्लेण्ड में जाकर ईस्ट इंडिया कम्पनी की प्रशंसा की थी। परमाणु समझौते के नाम पर राष्ट्रीय हितों की बलि चढाई। देश के संसाधनों पर प्रथम अधिकार मुस्लिमों का बताने वाला व्यक्ति शर्म का पात्र है। सत्ता के सारे सूत्र कांगे*स ई अध्यक्ष को देकर उन्होंने हमारे संविधान का मजाक बनाया है। मुम्बई पर पाकिस्तानी हमले का कोई भी प्रतिरोध नहीं किया गया है। किरण ने कहा कि 1984 के सिख विरोधी दंगो पर मनमोहन सिंह क्यों चुप है। जनता जानती है कि उनके हाथ में देश सुरक्षित नहीं है। यदी ऐसा नपुंसक ,कठपुतली प्रधान मंत्री बना रहेगा तो वह दिन दूर नही है ,जब संसद पर सिम्मी ,जैशे मुहम्मद या कसाब के हिमायातिओं का कब्जा होगा.जो मौके की ताक़ में बैठे है .यहाँ के हिन्दुओं को तो पाहिले ही अपराधी अपराधी बताकर आतंकवादिओं और पाकिस्तानिओं का हौसला बढाया जा रहा है.
और पाकिस्तान को क्लीन चिट दी जा रही है .अब जब भी भारत कोई आतंकवादी घटना होगी पकिस्तान साफ़ बरीहो जाएगा ,और उलटे हिन्दुओं को ही जिम्मेदार बताएगा
हमें हमें शीघ्र ही किसी बड़ी आतंकवादी कार्यवाही की संभावना से इंकार नहीं करना चाहिए



पाकिस्तान के दो बाप हैं ?

नियमानुसार किसी भी व्यक्ति का एक ही पिता हो सकता है जो उसे जन्म देता है .परन्तु अक्सर देखा जाता है कियदि कोई किसी बच्चे का नामकरण करता है,उसका पालन पोषण करता है ,और उसका खर्चा उठाता है ,तो लोग उसे उस बच्चे का पिता मान लेते हैं. इसके अनुसार पाकिस्तान के दो बाप हैं.एक जन्मदाता ,नाम देने वाला.दूसरा पालने वाला खर्चा उठाने वाला .
लोग भ्रमवश जिन्नाको पकिस्तान का बाप मानते हैं ,जैसे कि पाकिस्तानी जिन्ना को बाबाये कौम कहते हैं.भारत के लोग जिन्ना को देश के विभाजन के लिए जिम्मेदार मानते हैं.और उसे कोसते हैं
१- पाकिस्तान का पहिला बाप
वैसे जीना कांग्रेसी था.और उसे मजहब से कोई लेना देना नहीं था.वह न रोजा रखता था न नमाज पढ़ा था.यहाँ तक वह उर्दू भी नहीं जानता था.जिन्ना के तौर तरीके अंग्रेजों कि तरह थे .जिन्ना मशहूर बैरिस्टर था.इसलिए अपनी बात तर्क से साबित कर सकता था.
जब सन १९१६ में लखनऊ में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ था तो जिन्ना भी उसमे गया था.उस अधिवेशन में मुस्लिम लीग के लोग भी गए थे.
कांग्रेस के प्रमुख लोगों में लोकमान्य तिलक, एनी बेसेंट श्री निवास शास्त्री ,रंगनाथ खापर्डे सहित जिन्ना भी मंच पर थे.
जसे ही जिन्ना मंच पर आये उनका स्वागत किया गया .बाद में जिन्ना ने सबके साथ वन्दे मातरम गाया .
यह सारी घटना तिलक ने अपनी डायरी में दर्ज की है .तिलक संस्कृत में निजी डायरी लिखते थे.यह पुस्तक १९७१ में पूना से छपी है
इसके सम्पादक मंडल में मुरार जी देसाई ,बी ड़ी जत्ती जैसे लोग हैं.इस घटना के बारे में यह लिखा हुआ है -
पुस्तक-तिलक यशो अर्णव खंड ३ अध्याय ५५ श्लोक १०९,११५
मुम्बई स्थितो जिन्ना विद्वान् इस्लाम भूषणं
अदिवाक्ता येन बेसेंट च तिलकौ समौ-१०९
अनुक्ताश्च इतरे पूज्या व्यास पीठ विराजरे
वन्दे मातरम इत्येत संगीतम मधुरे स्वरे.११२
उस अधिवेशन में जिन्ना ने प्रांतीय सरकारों में मुसलमानों के लिए एक तिहाई सीटें मांगीं ,जहां मुस्लिम आबादी बहुसंख्या में हो.जिन्नने कुल १६ मुद्दे रखे थे .उसमे हिन्दू -मुस्लिम एकता की बात भी थी.इसपर सरोजिनी नायडू ने जीना की तारीफ़ भी की थी
लेकिन कुछ गान्ग्रेसिओं ने जिन्ना का मजाक उड़ाया .और कहा यह अपना अलग देश माग रहा है .जिन्ना रुष्ट होकर वापस आ गया.
उसने कहा कि हमारा अब हिन्दुओं के साथ एक साथ रहना मुमकिन नहीं है.क्योंकि हमारी भाषा,हमारे रिवाज़,हमारा धर्म ,यहाँ तक हमारा खुदा भी अलग है
उन दिनों खिलाफत आन्दोलन जोर पर था.अंगरेजों ने तुर्की के खलीफा अब्दुल हमीद सानी को गद्दी से उतार दिया था.मुसलमान खलीफा को अपना धार्मिक और राजनीतिक नेता मानते थे.हरेक मुस्लिम राजा खलीफा के नाम पर मस्जिदों में अपने नाम से यह लकब लगाते थे
सिकंदारुस्सानी यमीनुल खिलाफाते नासिरुल मौमनीन
यानी दूसरे सिकंदर खलीफा का दायाँ हाथ मुसलमानों का मदद गार
इसके बाद जिन्ना कट्टर होने लगा
जब २९ दिसंबर १९३० में इलाहाबाद में मुस्लिम लीग का अधिवेशन हुआ था तो उसमे इकबाल को अध्यक्ष बनाया गया .इकबाल शायर था उसने सभामे यह शेर सुनाया ,जो उसकी किताब जावेद नामा में मौजूद है -इकबाल ने कहा
हो जाए अगर शाहे खुरासांका इशारा
सजदा न करूं हिंद की नापाक जमीन पर .
वहीं से पाकिस्तान शब्द की उत्पत्ति हुई थी .पकिस्तान शब्द में सात उर्दू अक्षर हैं जिन से मिलकर पाकिस्तान बन जाता है
पंजाब,असम,कश्मीर ,सिंध ,तराई यानी जानना के ऊपर का भाग,निजाम ,
इसा तरह पकिस्तान का पहिला बाप इकबाल है.
२- दूसरा २बाप
हम गांधी को पिता मानते हैं यह भूल है .गांधी ने भारत को नहीं पाकिस्तान को जन्म दिया था.भारत तब भी था जब गंदी ही नहींथा,वह भारत का पिता कैसे हो सकता है.जब पाकिस्तान बन गया तो गांधी ने पकिस्तान को ५५ करोड़ रुपया दिलवाया था.और इसके लिय भूख हड़ताल भी की थी पाहिले गांधी विभाजन के विरुद्ध था ,और कहता था कि बटवारा मेरी लाश पर होगा .लेकिन बाद में वह बात से पलट गया .और पाकिस्तान बनवा कर उसे रुपया भी दे दिया.
इसलिए गांधी भारत का नहीं पाकिस्तान का दूसरा बाप है.



शरीअत क्या है? क्या इसमें बदलाव सम्भव है? शरीअत, कुरान और हदीस पर आधारित है। लेकिन इसमें मानवीय व्याख्या भी शामिल है। कौन सी हदीस मानेंगे या नहीं मानेंगे, यह भी आदमी के फैसले पर निर्भर है। यहाँ तक कि कुरान की समझ भी मानवीय निर्णय पर आधारित है। शरीअत को पूरी तरह डिवाइन (खुदाई) या अपरिवर्तनीय मानना सही नहीं है। शरीअत कुछ डिवाइन स्रोत पर आधारित है लेकिन उस डिवाइन स्रोत की समझ, मानवीय है। जिस हद तक वह मानवीय है, उसे बदला जा सकता है।
हदीस के सोर्स पर सवाल उठाया जा सकता है या नहीं?क्यों नहीं उठा सकते। सारे मसलक अलग-अलग इसीलिए हुए कि अलग-अलग मसलक के लोग अलग-अलग हदीसें इस्तेमाल करते हैं। जैसे अहले हदीस हैं, वो तीन तलाक को नहीं मानते। हदीस के हवाले से ही नहीं मानते हैं। दूसरे मसलक मानते हैं, वो भी हदीस के हवाले से मानते हैं… तो हदीस का मसला विवादास्पद है। मुसलमानों में एक मसलक ऐसा भी है, जो हदीस को पूरी तरह नकारता है। यह अहले कुरान कहलाते हैं। यह भी सचाई है कि रसूल ने मना किया था कि हदीसें मत जमा करो, कल तुम इस पर लड़ोगे। हजरत अबु बक्र ने मना किया, हदीसें जमा मत करो। हजरत उमर के जमाने में ढाई-तीन साल तक हदीसों को स्वीकार नहीं किया जा रहा था।फिर शियों की हदीस अलग है। सुन्नियों की हदीस अलग है। बरेलवियों की अलग है। तो आप क्या करेंगे। आप फिर यह कैसे कहेंगे कि शरीअत खुदाई है। यहीं साबित हो जाता है कि शरीअत का बड़ा हिस्‍सा मानव निर्मित है। अगर आदमी ने शरीअत बनाया है तो उसे बदलना चाहिए।उस दौर में पैगम्बर से कई सवाल पूछे जाते थे, उसका वो जवाब देते थे। यह जवाब एक-दूसरे से आगे बढ़ी। वो ही हदीस है। जब शरीअत लॉ का संग्रह किया जा रहा था, तो हदीसों का सहारा लिया गया।सुन्नी इस्लाम में शरीअत के चार स्रोत हैं-कुरान, हदीस, इज्मा और कियास। कियास यानी जब कोई चीज कुरान या हदीस में नहीं मिलती तो आप उस तरह के हालात के आधार पर समस्याओं का हल तलाशते हैं। जब यह काम हो गया तो इस हल के लिए आप आम सहमति पैदा करना चाहते हैं ताकि सब उसे स्वीकार कर लें। इसमें सिर्फ कुरान खुदाई है। हदीस, इज्मा और कियास मानव निर्मित है।
जब इतना हिस्सा शरीअत का मानव निर्मित है, तो उसमें बदलाव करना चाहिए। जैसे चार शादी का मसला है। कुरान ने कहीं नहीं कहा कि चार शादी करो, बल्कि सावधान किया कि मत करो। क्यों, क्योंकि तुमसे इंसाफ नहीं होगा। नामुमकिन है सभी बीवियों से इंसाफ करना। इस पर कई हदीसें हैं। हदीसें इस्तेमाल कर-कर के इसे जायज बना लिया गया। इसीलिए शरीअत का कुछ हिस्सा खुदाई है तो कुछ हिस्सा मानव निर्मित। तो उस हद तक तो बदलाव होना चाहिए।कुरान जो मूल्य देता है, वह स्थाई है। बहुत सारी चीजें कुरान में संदर्भ के साथ, उस समय के हालात के मुताबिक है। जैसे-दासता। उस वकत दास रखने की इजाजत देनी पड़ी क्योंकि हालात ऐसे थे लेकिन संकेत दे दिया कि यह होना नहीं चाहिए। हालांकि आज भी ऐसे उलमा हैं जो कहते हैं कि हमें हक है गुलाम रखने का। वो बेइमानी करते हैं, कुरान के साथ। उन चीजों को उठा लेते हैं, जहाँ गुलाम रखने की इजाजत है। उस चीज को छिपा लेते हैं, जहाँ इसे मानवीय सम्मान के खिलाफ बताया गया है। यह चयनित नजरिया है इसीलिए जब तक पूर्णता में कोई बात नहीं होगी तो दिक्कत होगी।
इकबाल अपने ‘रिकंस्ट्रक्शन ऑफ रीलिजियस थॉट इन इस्लाम` में बहुत साफ कहा है कि मुसलमानों की हर पीढ़ी को शरीअत के बारे में पुनर्विचार का अधिकार होना चाहिए। और शरीअत लॉ में बदलाव होना चाहिए। वह उसी समझ के तहत यह बात कह रहे थे कि सामाजिक जरूरत बदलती है। तुर्की में जो उस वक्त हो रहा था, उसका उन्होंने स्वागत किया। कमाल पाशा जो बदलाव ला रहे थे, वो उसकी काफी प्रशंसा कर रहे थे। उन्होंने कहा, जो काम पहले उलमा करते थे, उसे अब पार्लियामेंट को करना होगा। निर्वाचित प्रतिनिधि को करना होगा। वो लोग सामाजिक जरूरत के हिसाब से बदलाव के लिए आम सहमति पैदा करने का काम करेंगे। लेकिन उलमा इसे कभी तस्लीम नहीं करेंगे क्योंकि इससे उनकी लीडरशीप जाती है। एक मसला लीडरशीप का भी है। सारे मसलक के नेता जो आपस में लड़ते हैं, वो वास्तव में सत्ता की लड़ाई है। चाँद के मसले पर भी जो होता है, वह यही है।
मौलाना फतवे अपने-अपने मसलक (पंथ) के हिसाब से देते हैं। ससुर के बलात्कार की पीड़ित इमराना ने अपने बारे में दिये गये फतवे को नहीं माना। आज भी वह अपने शौहर के साथ रह रही है। शौहर ने भी नहीं माना उस फतवे को। अपनी बीवी को नहीं छोड़ा उसने। इसीसे से हम समझ सकते हैं कि फतवा कितना बाध्यकारी है। फतवा महज एक राय है, जो किसी आलिम द्वारा किसी खास मसले पर दिया जाता है। कोई माने न माने, यह उसकी आजादी का सवाल है। इसीलिए कहा जाता है कि इस्लाम में प्रीस्टहूड नहीं है। कोई यह नहीं कह सकता कि फतवा मानना ही पड़ेगा।